संदेश
लता मंगेशकर - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली
जब कभी मुझे जीवन की अद्भुत और अलहदा अनूभूति ने भाव-विभोर किया मुझे उस आवाज़ का आलिंगन महसूस हुआ। जब कभी दुख की काहिली सी परछाई ने मेरे…
मैं नहीं कवि जो लिखता हूँ - कविता - लखन अधिकारी
मैं नहीं कवि जो लिखता हूँ शब्दों को पीता हूँ लिखकर उगलता हूँ तराश-तराश कर चयन कर वेदनाओं में ढलता हूँ सोचता हूँ, समझ कर, कुछ-कुछ …
सहचर - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
ये रहस्यमयी काली रात मेरा उजाला है जिसके स्याह अँधेरे में दुबकी पड़ी है प्रभात टटकी और नई; तालाब के जल में– सप्तर्षि अपना अक्स देखकर हँ…
आँखों का सपना - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया
दिन भर मुट्ठी में उजाला पकड़ता रहा, फिर भी क्यों मन अँधेरे से डरता रहा, पग ने भी जाने कितना पथ चल डाला, कहते जीवन को अब भी है, मधुशाला…
बहुत दिनों के बाद - कविता - प्रवीन 'पथिक'
बहुत दिनों के बाद, लगता है ऐसे; जैसे ज़िंदगी का दायरा सिमट गया हो एक छोटी बूॅंद में। मेघों की भीषण गर्जना, सिसकियों तक; हो गई हो सीमित।…
नुक़्ते से भी कुछ कम में सिमट जाएँगे इक दिन - ग़ज़ल - सालिब चन्दियानवी
अरकान : मफ़ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़ऊलुन तक़ती : 221 1221 1221 122 नुक़्ते से भी कुछ कम में सिमट जाएँगे इक दिन, दुनिया तेरे परदे से जो हट जा…
मशहूर बनारस - कविता - देवेश द्विवेदी 'देवेश'
मशहूर बनारस शिव-नगरी, मशहूर बनारस का है पान। मशहूर कचौड़ी गली यहाँ, मशहूर यहाँ के हैं पकवान। मशहूर मलाई-पूड़ी है, मशहूर यहाँ गंगा-स्ना…
मेरी तबियत ख़राब है - हास्य कविता - शुभम पाठक
डॉक्टर साहब मेरी तबीयत ख़राब है, इसके पीछे की वजह सिर्फ़ शराब है। एक बार मुझे ठीक कर दो, मेरे अंदर दवा गोलियों का डोज भर दो। फिर कभी नही…
मधुर स्मृति - कविता - राजेश 'राज'
अत्यंत लघु परन्तु अविस्मरणीय अकीर्तित प्रेम की लंबे अंतराल के बाद एक प्रणय कहानी फिर याद आई। अब भी उतनी ही असहिष्णु, अव्यक्त अल्पजीवी …
प्रभा - गीत - संजय राजभर 'समित'
थका हुआ क्यूँ सोया है तू, जन्म मिला अलबेला है। कट गई घनेरी रात प्रिये! जाग प्रभा की बेला है॥ न कर आलस अंतस में, कर्म धन चमकता है। सीकर…
रघुपति से जीत न पाऊँगा - कविता - अनूप अंबर
मेघनाद उदास बहुत है, रघुपति से जीत न पाऊँगा, पिता वचन स्वीकार मुझे, लड़ते-लड़ते मर जाऊँगा। इंद्र न मुझसे जीत सका, फिर तपस्वी कैसे जीत …
वक़्त का परिंदा - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
वक़्त का परिंदा आया, ना जाने किस देश से हो, यह सिखलाए सत्य ईमानदारी प्रेम का वेश हो। एक ही देश है, एक ही राग, एक ही गान हमारा, एक ही लह…
महज़ कविता नहीं हूँ मैं - कविता - श्याम नन्दन पाण्डेय
तीर सा चुभता शब्द हूँ मैं। शब्दों में पिरोई, मोतियों का गुच्छा हूँ मैं, शब्द नहीं शब्द का सार हूँ मैं॥ कटते पेड़ों की उन्मादी हवा हूँ म…
ओ मेरे साँवरे रे - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
रूप सलोने यशुमति कान्हा, ओ मेरे लला साँवरे रे। मनमोहन गिरिधर नागर तू, लावण्य रूप निहारे रे। लीलाधर बहुरुपिया कान्हा, नंदज तू राजद…
माँ के आँचल में ज़रा सा ठहर के देखें - ग़ज़ल - दिलीप वर्मा 'मीर'
अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन मफ़ऊलु तक़ती : 2122 1212 221 माँ के आँचल में ज़रा सा ठहर के देखें, जन्नत वहीं है ज़रा दिल में उतर के देखें। …
मैं नर के उर की नारी हूँ - कविता - ईशांत त्रिपाठी
मैं नर के उर की नारी हूँ, कुंठित व्यथित दुखारी हूँ, अधिकारों की हनन कथा को, वर्णित करके हारी हूँ, मैं नर के उर की नारी हूँ। संवेदन का …
मुहब्बत है गाँव में - कविता - जितेन्द्र शर्मा
माना कि थोड़ी सी ग़ुरबत है गाँव में, शर्म है, रोटी है, मुहब्बत है गाँव में। गाय है, गोबर है, चूल्हा है खाट है, दादा का दुलार और पापा की …
जीवन पल दो पल - कविता - विजय कुमार सिन्हा
ज़िंदगी में हर पल लिखा जाता है एक नया तराना, कभी सूरज की तपती धूप कभी चाँदनी की शीतलता। बीत रहा ज़िंदगी का हर पल आश में, विश्वास में,…
मतना गर्भ म्हं मार बेटी - हरियाणवी ग़ज़ल - समुन्द्र सिंह पंवार
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन तक़ती : 2122 2122 मतना गर्भ म्हं मार बेटी, सृष्टि का सिंगार बेटी। लक्ष्मी का हो रूप दूसरा, मतना समझो भार ब…
बसंत हमारी आत्मा का गीत और मन के सुरों की वीणा है - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली
जनवरी का महीना था ज़मीन से उठता कुहासा मेरे घर के आसपास विस्तीर्ण फैले हुए गन्ने के खेतों पर एक वितान सा बुनकर मेरे भीतर न जाने कहीं स…
हे मधुमास! ऋतुपति बसंत - कविता - राघवेंद्र सिंह
हे मधुमास! ऋतुपति बसंत, आओ राजा हे अधिराज! हे मधुऋतु! हे कुसुमाकर प्रिय! आओ बासंतिक पहन ताज। आ गया माघ का शुक्ल पक्ष, आ गई पंचमी तिथि …
तिरंगा - कविता - देवेश द्विवेदी 'देवेश'
सीमा से आती देश की पुकार तिरंगा, है हिन्द के ऐश्वर्य की जयकार तिरंगा। होली, दीवाली, ईद का त्योहार तिरंगा, सैनिक के लिए देश का उपहार ति…
नेताजी सुभाष चंद्र बोस और गिरिडीह - आलेख - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
गिरिडीह के सुनहरे अतीत के पन्ने खोलकर देखने से पता चलता है कि यह कभी बंगालियों का गढ़ हुआ करता था। यहाँ के शुद्ध वारावरण और सुंदर आबोहव…
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