लता मंगेशकर - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली

जब कभी मुझे जीवन की अद्भुत और अलहदा अनूभूति ने भाव-विभोर किया मुझे उस आवाज़ का आलिंगन महसूस हुआ।

जब कभी दुख की काहिली सी परछाई ने मेरे संपूर्ण अस्तित्व को क्षीण किया। उस आवाज़ ने धीमे से मेरे कर्णों में मधुप घोलकर मुझसे जुड़ी उन दुखद स्मृतियों को, अश्रुपूर्ण अबाध नदी के रुप में परिणत कर मेरी आँखों से निश्चछल बहने दिया जिसके परिणामस्वरूप आज वही स्मृतियों के पुराने खंडहर जीवित अहसासों के रूप में मुझमें जज़्ब हैं।

जब कभी मन की अभिलाषा पूरी हुई और जीवन के उस क्षणिक उत्सव को मनाने हेतु मन को किसी साथ की ज़रूरत हुई तो उस उर्ज्वसित आवाज़ को मैंने अपना साथी चुना। आह्लादित मन और उस आवाज़ की जुगलबंदी, जीवन के उत्सव के शिखर पर मानो सावन की बारिश में किसी प्रफुल्लित यौवांगना के अंग-अंग का भीग जाना।

आदिकाल से ही संगीत प्रकृति में पुष्पित व पल्लवित है यहीं से निकलकर संगीत ने स्वयं को तराशकर विविध पायदानों पर अपनी जगह बनाई है।

संगीत एक ऐसी महान कला है जो मनुष्य को उसकी मूल आवश्यकताओं से भी ज़्यादा पोषित करती है।

संगीत जीवन में बसंत की सुगबुगाहट है। पत्तियों की खड़खड़ाहट में संगीत है, हवा की सरसराहट में संगीत है, नदी की किल्लोलता में संगीत है, पुष्पों की मदमस्तता में संगीत है। पक्षियों के कलरव में संगीत है। नदी को ओट-अवगुंठित करते पाषाणों में संगीत है।जंगली झरनों के घाटियों में गिरने का संगीत है। अर्थात जीवन के कण-कण में संगीत है।

जीवन में यदि सरसता का राग है संगीत तो जीवन की उदासियों का उन्मूलन भी है संगीत। संगीत ही जगत के कण-कण से हमारी  चेतना के अनुराग का आधार है।

एक लत सी है मुझे लता जी को सुनना और साथ में काम करते-करते उनके गानों को गुनगुनाना।

बिजली चली जाए एलेक्सा बंद तो मेरे घर के सारे कामकाज भी ठप्प।

कोई सी भी ऋतु की भोर हो जहाँ पहाड़ पर सूरज अवतरित होता है वहीं मेरे घर की दीवारें, मेरे फूल-पौधे ख़ासकर मेरी तुलसी, सभी लता जी के मधुर गानों को सुनकर अपनी-अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुरूप प्रत्येक दिन स्वयं को जीवन के प्रवाह में समाहित कर देते हैं।

बचपन के बाद एक मुक़ाम ऐसा भी आता है जब सब ओर से वितरागी होकर एक संगीत ही है जो अपना सा लगता है, बाक़ी सब मिथ्या। जबसे किशोरवयस ने सभी की भाँति मुझे भी अपने घेरे में लिया तभी से लता जी मेरे साथ अनवरत हैं।

लता जी के गानों का कारवाँ और मेरी ज़िन्दगी का सफ़र जैसे नाभि और नाल का संबंध।

लता जी के गीतों ने सभी संगीत प्रेमियों के जीवन के हर क्षणों को दिल से छुआ है। कभी उनकी ख़ुशी के क्षणों में कभी उनके दुख के क्षणों में, कभी ईश्वर की आराधना में, कभी देशभक्ति के उन्माद में और बनिस्बत इसके जीवन और संसार में उपलब्ध रहस्यों और अद्भुत घटनाओं की अनुभूति में।

देश-विदेश, विभिन्न धर्म और जातियों, भाषाओं और वर्गों के अनगिनत लोगों को उनके दुख और संकट की घड़ी में माँ के ममत्व का आँचल और पिता के विराट वक्ष-स्थल सा संबल लता जी के गीतों ने ही उन्हें प्रदान किया है। मानव जीवन की सेवा का दुलर्भतम अवसर भी हैं लता जी के गीत।

महान कला ही मनुष्य को यह विशिष्ट गौरव प्रदान करती है जिसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण लता जी हैं। मेरे लिए उनके गीत मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति से भी बहुत ज़्यादा ऊपर है।

भारतीय उपमहाद्वीप की आत्मा का स्वर हैं लता जी के गीत जिन्होंने आठ दशक पहले गाना शुरू किया था।

लता जी ने अपनी मातृभाषा मराठी और हिंदी की तरह उतनी ही मिठास के साथ उर्दू में भी गाया है।

लता जी के गीत ने जिस तरह से हमारे विभाजित उपमहाद्वीप को जोड़ा है वह इस बात को पुष्ट करती हैं कि संगीत की कोई सरहद नहीं होती है। ना ही कोई पाँव वह तो हवाओं के वेग में कहीं भी किसी के भी कर्णो में घुल जाता है।

लता मंगेशकर का जाना मेरे लिए कभी उनके जाने जैसा नहीं है। वह मेरी दैनंदिन क्रियाओं में मेरे जीवन के हर रंगों में हैं।

लता जी हम संगीत-प्रेमियों के लिए क्या हैं? इसकी अभिव्यक्ति शब्दों, वाक्यों और भाषाओं की अभिव्यक्ति से परे है, किंतु यह बात तो तय है कि आज के कट्टर और पूर्वाग्रह के दौर में लता जी ने हमारे विभाजित उपमहाद्वीप को अपने गीतों के द्वारा एक सूत्र में पिरोया है। जब-जब हम लता जी के मधुर गानों को सुनेंगे, उनकी खनखनाती हुई, सुरों में सधी हुई सफल आवाज़ तब-तब हमें मानव सभ्यता की एकजुटता में रत अमर आवाज़ के रूप में सुनाई देगी।

लता जी आप कहीं नहीं गए हो आपके गीत वजह हैं जो हमारे जीवन के प्रत्येक क्षणों की अनुभूति में हमारे साथ जीवंत हैं। लंबा समय लगेगा अभी यह स्वीकार करने में की सदी की एक विलक्षण आवाज़ जो अब अपनी देह खो चुकी है किंतु यह सुकून भी है कि लता जी के गीत हम सभी की आत्मा के गीत के रूप में अजर व अमर है।

लता जी आपके गीत मेरे जीवन का सर्वोत्तम दर्शन शास्त्र भी हैं।
शत शत नमन!


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