मधुर स्मृति - कविता - राजेश 'राज'

अत्यंत लघु
परन्तु अविस्मरणीय
अकीर्तित प्रेम की
लंबे अंतराल के बाद एक
प्रणय कहानी फिर याद आई।

अब भी उतनी ही
असहिष्णु, अव्यक्त
अल्पजीवी तथा अभ्यागत
द्रवित ह्रदय में रची बसी 
नेक कहानी फिर याद आई।

पुस्तकों से अंकुरित
परिशुद्धता में पगी
अभिव्यक्ति की द्वन्दता
कल्पनाओं के आग़ोश की 
मधुर कहानी फिर याद आई।

किसी को समझने, जानने में
रुठने और फिर मनाने में
वक्त तो लगता है, उस
आकर्षण के गुरूत्व में
समाने की कहानी फिर याद आई।

दिल के जुड़ने व टूटने
सब एक तरफ़ा होने
किसी को सर्वस्व मान लेने
फिर कुछ साक्ष्यों को सँजोने
की कहानी फिर याद आई।

शीघ्र ही रहस्योद्घाटन
फिर प्रायश्चित गहन
पवित्र रिश्ते के समायोजन
और संदेह के परिमार्जन
की कहानी फिर याद आई।

राजेश 'राज' - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)

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