जीवन पल दो पल - कविता - विजय कुमार सिन्हा

ज़िंदगी में हर पल लिखा जाता है
एक नया तराना,
कभी सूरज की तपती धूप 
कभी चाँदनी की शीतलता। 
बीत रहा ज़िंदगी का हर पल 
आश में, विश्वास में, ख़ुशी में, उदासी में।
कभी इसने जीभर हँसाया,
कभी जीभर रुलाया,
कोई दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज
किसी के लिए ज़िंदगी है सरताज। 
बचपन, जवानी, और बुढ़ापा 
इन्हीं तीन सीढ़ियों, में समाई है
ज़िंदगी की कहानी। 
फिर क्यूँ करे हम 
कल की बात, 
या भविष्य की चिंता?
हर दिन जियो, खुल कर जियो।
मीठा बोलो, तृष्णा छोड़ो, ग़ुस्सा थूको। 
दुख-दर्द और ख़ुशियों से भरी है
ज़िंदगी की कहानी।
किसी का ज़िंदगी में आना, 
किसी का जाना, 
यही है ज़िंदगी का तराना।  

विजय कुमार सिन्हा - पटना (बिहार)

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