अरकान : मफ़ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़ऊलुन
तक़ती : 221 1221 1221 122
नुक़्ते से भी कुछ कम में सिमट जाएँगे इक दिन,
दुनिया तेरे परदे से जो हट जाएँगे इक दिन।
तारीख़ बने जिससे कि महफ़ूज़ रहें हम,
मीरास अगर होंगे तो बँट जाएँगे इक दिन।
महफ़ूज़ हैं कुछ लोग अभी मेरी नज़र में,
वादों से जो ख़ुद अपने पलट जाएँगे इक दिन।
मुँह फेर के कब आए बता जंगो जदल से,
मैदान-ए-मोहब्बत में भी डट जाएँगे इक दिन।
झुकते नहीं जो पेड़ कभी तेज़ हवा से,
वो वक़्त की रफ़्तार से हट जाएँगे इक दिन।
मौक़ा जो मिला पूछेंगे क्या हाल है 'सालिब',
दिल लोगों के जब तुझसे उचट जाएँगे इक दिन।
सालिब चन्दियानवी - हापुड़ (उत्तर प्रदेश)