रघुपति से जीत न पाऊँगा - कविता - अनूप अंबर

मेघनाद उदास बहुत है, रघुपति से जीत न पाऊँगा,
पिता वचन स्वीकार मुझे, लड़ते-लड़ते मर जाऊँगा।

इंद्र न मुझसे जीत सका, फिर तपस्वी कैसे जीत रहे,
ये नर नहीं नारायण है, ये मुझे अंतर्मन से दिख रहे।
मृत्यु हमारी निश्चित है, अब इससे न बच पाऊँगा,
योद्धा का काम तो लड़ना है, मैं अपना फ़र्ज़ निभाऊँगा।

मेघनाथ उदास बहुत है, रघुपति से जीत न पाऊँगा,
पिता वचन स्वीकार मुझे, लड़ते-लड़ते मर जाऊँगा।

सारे प्रहार विफल हुए, ब्रह्माअस्त्र भी काम न आया,
पशुपतास्त्र ने उनको, कुछ भी हानि नहीं पहुँचाया।
सीता के हर आँसू का, अब तो मैं मूल्य चुकाऊँगा,
पितृदेव के कृत्य का, मैं परिणाम भोग कर जाऊँगा।

मेघनाथ उदास बहुत है, रघुपति से जीत न पाऊँगा,
पिता वचन स्वीकार मुझे, लड़ते-लड़ते मर जाऊँगा।

अपनी प्यारी सुलोचना से, ये रिश्ता तोड़ के जाऊँगा,
उस प्रेम की पावन मूर्ति को, खंडित मैं कर जाऊँगा।
गए विभीषण छोड़ के तात को, पर मैं छोड़ न पाऊँगा,
मृत्यु भी स्वीकार मुझे पर, तात का वचन निभाऊँगा।

मेघनाथ बहुत उदास है, रघुपति से जीत न पाऊँगा,
पिता वचन स्वीकार मुझे, लड़ते-लड़ते मर जाऊँगा।

जब शिव शंकर भी रूठ गए, वो संबंध पुराने टूट गए,
जब से सीता का हरण किया, लंका के भाग्य फूट गए।
गए जहाँ पर कुंभकर्ण, मैं भी अब वहाँ पर जाऊँगा,
यज्ञ भूमि में प्राणों की, मैं आहुति आज चढ़ाऊँगा।

मेघनाथ बहुत उदास है, रघुपति से जीत न पाऊँगा,
पिता वचन स्वीकार मुझे, लड़ते-लड़ते मर जाऊँगा।

अनूप अंबर - फ़र्रूख़ाबाद (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos