नेताजी सुभाष चंद्र बोस और गिरिडीह - आलेख - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'

गिरिडीह के सुनहरे अतीत के पन्ने खोलकर देखने से पता चलता है कि यह कभी बंगालियों का गढ़ हुआ करता था। यहाँ के शुद्ध वारावरण और सुंदर आबोहवा बंगाल के संभ्रांत परिवारों को खींच कर लाता था और इसी क्रम में वे यहाँ आकर अपना उत्तम स्वास्थ्य-लाभ अर्जन करने हेतु आते थे और कोठियाँ बनाया करते थे। उनके कोठियों की साज-सज्जा और फूल के बगीचे काफी आकर्षक हुआ करता था।
बात सिर्फ़ कोठियों की साज-सज्जा या आकर्षक बग़ीचे तक सीमित नहीं बल्कि इनमें अधिकतर वे कोठियाँ थी जहाँ बड़े-बड़े देशभक्त अंग्रेजों के ख़िलाफ़ आंदोलन की रणनीति बनाया करते थे।
जनश्रुति के अनुसार महान स्वाधीनता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस सन् 1943 में गिरिडीह शहर स्थित बरगंडा के 'आम्रपाली भवन' में बैठकर अंग्रेजों के ख़िलाफ़ रणनीति तैयार किए।
इतना ही नहीं, उनका सम्बंध इस क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यवसायिक स्थान सरिया के 'लालकोठी' या 'प्रभाती कोठी' से भी रहा जहाँ उन्हें अंग्रेज पुलिस द्वारा घेर लिया गया था और वे पुलिस को चकमा देकर हजारीबाग रोड रेलवे स्टेशन से ट्रॉली पर गोमो की ओर भाग निकले।
नेताजी मधुपुर में भी आकर रहा करते थे। मधुपुर में रहकर उन्होनें विशाल जनसभा को संबोधित भी किया था।
ये वो शख़्स थे जिनके ओजस्वी भाषण सुनने के बाद मधुपुर के सैकड़ों लोग उत्साह और उमंग के साथ स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े।
आख़िर नेताजी के रूप में उन्हें गरम ख़ून का एक महानायक मिल गया था।
समय गुज़रने के साथ देश आज़ाद हुआ। नेताजी अंतर्धान हुए।
आज भी गिरिडीह जिला के निवासी उनकी प्रतीक्षा में पलक पाँवड़े बिछाकर बैठे हैं।
नेताजी की स्मृति स्थल के रूप में लाल कोठी की अब बिक्री हो चुकी है।
पिछले वर्ष 2012 में गिरिडीह के फॉरवर्ड ब्लॉक के एक कार्यक्रम में नेताजी बोस की भतीजी चित्रा बोस और वर्ष 2013 में भतीजा सुब्रोतो बोस गिरिडीह पधारे थे।
लेकिन अफ़सोस कि वे नेताजी के विरासत 'लाल कोठी' जिसका नींव स्वयं नेताजी रखे थे, उनके स्वागत करने में असफल रही।वह इसलिए क्योंकि दुर्भाग्यवश इसे धरोहर का दर्जा नहीं मिल सका।

डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी' - गिरिडीह (झारखण्ड)

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