मैं नहीं कवि जो लिखता हूँ
शब्दों को पीता हूँ
लिखकर उगलता हूँ
तराश-तराश कर चयन कर
वेदनाओं में ढलता हूँ
सोचता हूँ,
समझ कर,
कुछ-कुछ भाव राजनीति से लड़,
अपने आंतरिक विचारों से लड़ता हूँ
मैं लिखता हूँ,
चेतन भाव से,
न की प्रेम भाव से
मैं हर दिन लड़ता हूँ
संभाल कर शब्दों की पोटली को
हर शाम हिचकता हूँ
और,
मैं लिख भी लेता हूँ।
लखन अधिकारी - द्वाराहाट, असगोली (उत्तराखंड)