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अंतिम संस्कार का विज्ञापन - कहानी - मानव सिंह राणा 'सुओम'
विज्ञानपन देखा तो हिल गए राजमणी त्रिपाठी। “कैसा कलियुग आ गया है? अब माँ बाप के लिए बच्चों पर इतना समय नहीं कि वह उनको अपना समय दे सके …
ईर्ष्या-निन्दा त्याग दो - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
ईर्ष्या-निन्दा त्याग दो, कबहुं न राखो पास। निन्दा से प्रभुता घटै, ईष्या उपजै रास॥ ईर्ष्या उपजै रास, अरे! निन्दा से दूरी। दोनों मन के द…
सुभाष चंद्र बोस - कविता - प्रवल राणा 'प्रवल'
23 जनवरी को कटक में जन्मे, सुनो सुभाष की जीवन गाथा। जानकी नाथ बोस थे पिताश्री, प्रभावती थीं सुभाष की माता। कटक से प्राथमिक शिक्षा ली थ…
वो ग़ज़ल तुम्हारी है लेकिन वो मेरे मन की भाषा है - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
वो ग़ज़ल तुम्हारी है लेकिन वो मेरे मन की भाषा है, जब भी पढ़ती हूँ लगता है यह जन्मों की अभिलाषा है। हर शब्द शब्द कहता मुझसे यह है मेरी ह…
प्रेम - कविता - गोलेन्द्र पटेल
संबंध टूटता है समय के कंठ से उत्तर फूटता है 'प्रेम क्या है? कबीर का अढ़ाई अक्षर है? बोधा की तलवार पर धावन है?' 'ना, भाई, ना…
जब चादर-ए-यक़ीं में कई छेद हो गए - ग़ज़ल - सालिब चन्दियानवी
अरकान : मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन तक़ती : 221 2121 1221 212 जब चादर-ए-यक़ीं में कई छेद हो गए, हम चीज़ क्या थे हममें भी मतभेद हो गए…
हमारा भारत - गीत - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
अरुणाचल है शीश हमारा, कश्मीर से कन्याकुमारी, मेरी बाँहें। राजस्थान, गुजरात है पग हमारा, और दिल्ली आत्मा, और दिल्ली आत्मा। है है, है है…
सिर चढ़ बोलेगा - गीत - सिद्धार्थ गोरखपुरी
जटिल प्रश्न है, कठिन घड़ी है इस मिथ्या को जब तोड़ेगा वक्त तेरे संग ज़ुबाँ मिलाकर सबके सिर चढ़ बोलेगा। क्या कोई प्रश्न हुआ है जग में? जिसका…
पार्थ - कविता - राकेश कुशवाहा राही
या तो युद्ध करो तुम या फिर हँसी सहो अपनो की, तज कर मोह संहार करो तुम अभी सभी अपनो की। जीकर तुम यथार्थ में मत बात करो मरे सपनो की, आने …
पहाड़ का दर्द - कविता - सुनील कुमार महला
कभी ग़ौर से देखना पहाड़ के पाहन को धरती माँ के कोख से निकला दृढ़ता से स्थापित स्पंदन सुनना तुम कभी पहाड़ के पाहन का हृदय के भीतरी कोनों मे…
देर कर दी आते-आते - गीत - रमाकांत सोनी 'सुदर्शन'
ख़ूब कमाया धन दौलत, थक गए तुम्हें बुलाते, प्राण पखेरू उड़ गए उनके, जन्मदाता कहलाते। उठ गया साया सर से तेरा, कभी पुत्र धर्म निभाते, बुढ़…
चलाे चले हम कसम ये खालें - ग़ज़ल - के॰ पी॰ सिंह 'विकल'
अरकान : मुफ़ाइलातुन मुफ़ाइलातुन मुफ़ाइलातुन मुफ़ाइलातुन तक़ती : 12122 12122 12122 12122 चलाे चले हम कसम ये खालें, कि हर किसी से वफ़ा करे…
ज़िंदगी के रंगमंच पर हर किरदार को निभा जाएँगे - ग़ज़ल - दिलीप वर्मा 'मीर'
ज़िंदगी के रंगमंच पर हर किरदार को निभा जाएँगे, ये दोस्त देख हम कठपुतली है हर दर्द छिपा जाएँगे। नचाती हैं दुनिया मुझे अपनी ऊँगलीयों के इ…
आत्मीयता की डोर - कविता - कर्मवीर सिरोवा 'क्रश'
तुझसे हैं मेरे बख़्त का रिश्ता, तू बस सा गया हैं मेरे दिल-ओ-तसब्बुरात में, प्रकति के घर जब सुबह पैदा होती हैं तेरे प्रेम के आँचल में क…
एक ख़्वाब - कविता - प्रवीन 'पथिक'
जीवन की गोधूली में, अतृप्त आकांक्षाओं का स्वप्न; आशान्वित हो तैरता है। किसी संघर्ष की छाती पर, उठता ऑंखों में अंधड़; गुर्राता झंझा का …
मुखाग्नि - कहानी - डॉ॰ वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज
बंसीलाल अब एकदम बूढ़े हो चले थे। अपने से चलना-फिरना भी अब मुश्किल-सा हो रहा था। पाँच-पाँच बेटे पर सभी अपने-अपने मतलब के। पत्नी पहले ही…
हिंदी भाषा - दोहा छंद - संगीता गौतम 'जयाश्री'
माँ जैसी ममतामयी, पिता जैसा दुलार। गुड़ जैसी मीठी लगे, मिश्री जैसी बहार॥ रस में जैसे आम है, शक्कर जैसा घोल। बहता है मीठा शहद, निकले जब …
नीला आसमान - गीत - संजय राजभर 'समित'
नम्र होकर ऊँचा उठें, करें सबका सम्मान। दूर क्षितिज से कहता है, यह नीला आसमान॥ सबल भावना परहित की, ह्रदय में रखना साज। सम भाव प्रकृति द…
फिर से फिर - कविता - संजय कुमार चौरसिया 'साहित्य सृजन'
यूँ तो कविता जीवन में अगणित आईं चली गई पर ना आया कोई परिवर्तन; इसको फिर से दोहराऊँ या सबके कानों में गुहार लगाऊँ। हे! उठो विश्व के भ…
माँ - कविता - देवेश द्विवेदी 'देवेश'
1. आज नहीं जो हो पाती है, बेशक कल हो जाती है। माँ जब साथ में होती है, हर मुश्किल हल हो जाती है। बस मेहनत की रोटी खाना, कह हाथ फेरती है…
कठिन हो जाता है - कविता - लखन अधिकारी
कठिन हो जाता है, कुछ सोचना और वह हो ना पाना, अरमानों का यूँ ही टूट जाना, सपनों का क़ैद हो जाना, किताबों का खुलना फिर उसी रूप से बंद होन…