मतना गर्भ म्हं मार बेटी - हरियाणवी ग़ज़ल - समुन्द्र सिंह पंवार

अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
तक़ती : 2122  2122

मतना गर्भ म्हं मार बेटी,
सृष्टि का सिंगार बेटी।

लक्ष्मी का हो रूप दूसरा,
मतना समझो भार बेटी।

एक नहीं दो-दो घरां म्हं,
ल्यावै सै सुण बहार बेटी।

बेटा कहे नै नाट बी जागा,
हरदम पावै त्यार बेटी।

धन-दौलत की भूखी कोन्या,
चाहवै सै बस प्यार बेटी।

होली, दीवाली और सलूमण,
सारे तीज-त्यौहार बेटी।

क़दम-क़दम पै पड़ै ज़रूरत,
जीवन का आधार बेटी।

सबनै कोन्या मिल्या करै,
हो उपरले का उपहार बेटी।

'पंवार' सदा रहै जीत म्हं,
कदे ना मानै हार बेटी।


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