मैं नर के उर की नारी हूँ - कविता - ईशांत त्रिपाठी

मैं नर के उर की नारी हूँ,
कुंठित व्यथित दुखारी हूँ,
अधिकारों की हनन कथा को,
वर्णित करके हारी हूँ,
मैं नर के उर की नारी हूँ।

संवेदन का परिधान ओढ़ के,
जन्म हुआ रसराज रूप में,
अतिक्रमण के भार मात्र से,
स्व अस्तित्व को विसारी हूँ,
मैं नर के उर की नारी हूँ।

कुछ ख़ुद नोचा,
कुछ जग नोचा,
मैं तिलमिल प्राण को त्यागी हूँ,
मैं नर के उर की नारी हूँ।

तू पुरुषार्थ तो कर 
मुझे शूल नहीं,
पर मैं भी हूँ 
मुझे भूल नहीं,
मैं इष्ट की राह को बारी हूँ,
मैं नर के उर की नारी हूँ।

ईशांत त्रिपाठी - मैदानी, रीवा (मध्यप्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos