संदेश
मुखाग्नि - कहानी - डॉ॰ वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज
बंसीलाल अब एकदम बूढ़े हो चले थे। अपने से चलना-फिरना भी अब मुश्किल-सा हो रहा था। पाँच-पाँच बेटे पर सभी अपने-अपने मतलब के। पत्नी पहले ही…
हिंदी भाषा - दोहा छंद - संगीता गौतम 'जयाश्री'
माँ जैसी ममतामयी, पिता जैसा दुलार। गुड़ जैसी मीठी लगे, मिश्री जैसी बहार॥ रस में जैसे आम है, शक्कर जैसा घोल। बहता है मीठा शहद, निकले जब …
नीला आसमान - गीत - संजय राजभर 'समित'
नम्र होकर ऊँचा उठें, करें सबका सम्मान। दूर क्षितिज से कहता है, यह नीला आसमान॥ सबल भावना परहित की, ह्रदय में रखना साज। सम भाव प्रकृति द…
फिर से फिर - कविता - संजय कुमार चौरसिया 'साहित्य सृजन'
यूँ तो कविता जीवन में अगणित आईं चली गई पर ना आया कोई परिवर्तन; इसको फिर से दोहराऊँ या सबके कानों में गुहार लगाऊँ। हे! उठो विश्व के भ…
माँ - कविता - देवेश द्विवेदी 'देवेश'
1. आज नहीं जो हो पाती है, बेशक कल हो जाती है। माँ जब साथ में होती है, हर मुश्किल हल हो जाती है। बस मेहनत की रोटी खाना, कह हाथ फेरती है…
कठिन हो जाता है - कविता - लखन अधिकारी
कठिन हो जाता है, कुछ सोचना और वह हो ना पाना, अरमानों का यूँ ही टूट जाना, सपनों का क़ैद हो जाना, किताबों का खुलना फिर उसी रूप से बंद होन…
काश मैं मोबाइल होती - लघुकथा - अंकुर सिंह
"आज काम बहुत था यार, बुरी तरह से थक गया हूँ।" सोफ़ा पर अपना बैग रखते हुए अजीत ने कहा। "अजीत, जल्दी से फ्रेश हो जाओ तु…
बादलों में प्रिय चाँद छिपा है - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
बादलों में प्रिय चाँद छिपा है, मस्ती उसमें आन पड़ा है। देख प्रिया रजनी अति भोली, नवप्रीता अब चन्द्रकला है। ख़ुशीनुमा सुनहली शाम है,…
रेत की सीख - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया
रेत के छोटे-छोटे कणों सा बनकर बिखरा हूँ, मैं पत्थर अपने जीवन की दुर्दशा से बहुत सिहरा हूँ, पर ख़ुश भी हूँ संग मैं तेरे, अगर रेत बना तो …
हाय ये बेरुख़ी - लघुकथा - नृपेंद्र शर्मा 'सागर'
आज साहिल और सरिता की मैरिज एनिवर्सरी है। साहिल बहुत ख़ुश है, वह ख़्वाब सजा रहा है कि सरिता आज अच्छे से शृंगार करेगी, उसकी पसन्द की साड़ी …
माँ - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
हमारे हँसने से जो हँसती है, रोने से जो रोती है। है कौन भला इस दुनिया में, ऐसी एक माँ ही होती है। हर दुःख के साए को जिसने, अपने आँचल मे…
हम उस युग के बेटे हैं - गीत - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
हम उस युग के बेटे हैं जब, घर-घर घर होते थे। घर के मालिक भी हम ही, हम ही नौकर होते थे॥ सबसे पहले माँ उठती जब, रात बीत जाती थी। चकिया पर…
तुम्हें पाकर - कविता - प्रवीन 'पथिक'
तुम्हें पाकर, लगता है ऐसे; जैसे जीवन की परिभाषा बदल गई है। अंतःकरण की रिक्तता, पूर्णता में परिवर्तित हो गई है। एक अज्ञात चिंता! जो कुर…
विष को भला पिएगा कौन? - कविता - अनूप अंबर
अमृत की है सबको लालसा, विष को भला पिएगा कौन? प्रकाश की है सबको ज़रूरत, दिनकर सा मगर तपेगा कौन? अंधकार ने मारी है कुंडली, निशा ने उत्पात…
ओ बहना - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मेरे दुःखते इस जीवन का, तुम मरहम थी बहना। कौन तकेगा राहें मेरी? चली गई क्यूँ बहना? मुझे अकेली देख जगत में, हिम्मत तूने बंधाई। मेरे टूट…
मैंने तो कभी लिखा ही नहीं - कविता - मयंक द्विवेदी
मैंने तो कभी लिखा ही नहीं, यह मन के उद्गार है। कुछ टीस रही होगी दिल में, ये इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। मैंने शब्दों को सँजोया नहीं, ये …
बरगद का दरख़्त है तू - कविता - सतीश शर्मा 'सृजन'
न किया पहचान निज का, तो बड़ा कमबख़्त है तू। तिनकों से तुलना क्या तेरी, बरगद का दरख़्त है तू। आज तो है कल नहीं तृण, वायु से या जल में बहता…
देना है इनकम टैक्स - कविता - गणपत लाल उदय
रह जाएगा सब कुछ एक दिन यही पर मेरे यारों, इस धन और दौलत को कोई इतना नहीं सवारों। देना है इनकम टैक्स प्रत्येक साल नियम बनालों, न करो च…
नारी तू अविचल है - कविता - जितेन्द्र शर्मा
नारी! तू अविचल है। पंकज सी कोमल है पर दृढ़ है तू गिरिवर सी, सागर सी गहरी है पर लहरों सी चंचल है, नारी! तू अविचल है। कुल वंश का मान है …
इस मासूम से हसीन चेहरे पर ये तल्ख़ कैसा है - ग़ज़ल - दिलीप वर्मा 'मीर'
अरकान : फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलात तक़ती : 212 1222 212 12221 इस मासूम से हसीन चेहरे पर ये तल्ख़ कैसा है, हम तेरी निगाहों में फ…
स्थिरता में जीवन - कविता - ऋचा गुप्ता
खुले आकाश के नीचे इक्ट्ठा हुआ जल बादलों का प्रतिबिंब जैसे ज़मीं से झाँकता महल चारों ओर हरियाली दूब और चहल पहल आँखें और तरंगों के जादू स…
माँ - कविता - मेहा अनमोल दुबे
अब केवल स्मृतियों में शेष, जीवन के अन्तर्भाव में निहित, हर लेखनी कि अन्तर्दृष्टि में, अब संसार कुछ नहीं, बस तुम सब जगह शेष हो, गंध और …
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