नारी तू अविचल है - कविता - जितेन्द्र शर्मा

नारी! तू अविचल है।
पंकज सी कोमल है पर दृढ़ है तू गिरिवर सी,
सागर सी गहरी है पर लहरों सी चंचल है,
नारी! तू अविचल है।

कुल वंश का मान है तुझसे, माता का सम्मान है तुझसे,
पिता का अभिमान है तुझसे,
तू धारा अविरल है,
नारी! तू अविचल है।
सागर सी गहरी है, लहरों सी चंचल है,
नारी! तू अविचल है।

जीवन का आधार है तुझमें,
ममता, स्नेह, प्यार है तुझमें,
सारा सद्व्यवहार है तुझमें।
तू सरिता सी सजल है,
नारी! तू अविचल है।
सागर सी गहरी है, लहरों सी चंचल है,
नारी तू अविचल है।।

जननी है पालक है, तरु की तू छाया है,
लक्ष्मी है रणचण्डी, मीरा है माया है।
विष भी है तू अमृत भी,
वीरों का तू बल है,
नारी! तू अविचल है।
सागर सी गहरी है, लहरों सी चंचल है,
नारी तू अविचल है।

जितेंद्र शर्मा - मेरठ (उत्तर प्रदेश)

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