जितेंद्र शर्मा - मेरठ (उत्तर प्रदेश)
नारी तू अविचल है - कविता - जितेन्द्र शर्मा
बुधवार, जनवरी 04, 2023
नारी! तू अविचल है।
पंकज सी कोमल है पर दृढ़ है तू गिरिवर सी,
सागर सी गहरी है पर लहरों सी चंचल है,
नारी! तू अविचल है।
कुल वंश का मान है तुझसे, माता का सम्मान है तुझसे,
पिता का अभिमान है तुझसे,
तू धारा अविरल है,
नारी! तू अविचल है।
सागर सी गहरी है, लहरों सी चंचल है,
नारी! तू अविचल है।
जीवन का आधार है तुझमें,
ममता, स्नेह, प्यार है तुझमें,
सारा सद्व्यवहार है तुझमें।
तू सरिता सी सजल है,
नारी! तू अविचल है।
सागर सी गहरी है, लहरों सी चंचल है,
नारी तू अविचल है।।
जननी है पालक है, तरु की तू छाया है,
लक्ष्मी है रणचण्डी, मीरा है माया है।
विष भी है तू अमृत भी,
वीरों का तू बल है,
नारी! तू अविचल है।
सागर सी गहरी है, लहरों सी चंचल है,
नारी तू अविचल है।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर