माँ - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव

हमारे हँसने से जो हँसती है,
रोने से जो रोती है।
है कौन भला इस दुनिया में,
ऐसी एक माँ ही होती है।

हर दुःख के साए को जिसने,
अपने आँचल में ही रोक लिया।
हर क़दम हमारे अडिग रहे, 
ऐसा दृढ़ता का आलोक दिया।
भीगे न कभी अंग हमारे,
ख़ुद वो गीले में सोती है।
है कौन भला इस दुनिया में,
ऐसी एक माँ ही होती है।

हर सुख को हम प्राप्त करें,
ये दुआ हमेशा करती है।
थक कर जब वापस आते,
हर रात जो थप-थप करती है।
बचे हुए सूखे भोजन को,
हँसकर जो खा जाती है।
है कौन भला इस दुनिया में,
ऐसी एक माँ ही होती है।

हर माँ का हम ध्यान धरे,
हृदय से उसका सम्मान करे।
करुणा निधान उस सागर का,
कभी ना हम अपमान करें।
दूर कभी हम उससे होते,
हर रात जो सो न पाती है।
है कौन भला इस दुनिया में,
ऐसी एक माँ ही होती है।

चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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