बादलों में प्रिय चाँद छिपा है - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

बादलों में प्रिय चाँद छिपा है, 
मस्ती उसमें आन पड़ा है। 
देख प्रिया रजनी अति भोली, 
नवप्रीता अब चन्द्रकला है। 

ख़ुशीनुमा सुनहली शाम है, 
द्युतिष्मान अब अस्ताचल है। 
चाँद चित्त ने किया दिल्लगी, 
ख़ुद बादल के ओट छिपा है। 

शर्मीला बनता चंदा लखि, 
हॅंसी निशा नव चन्द्रप्रभा है। 
पूनम की अधिरात सुहानी, 
नवयौवन निशिकान्त कला है। 

इठलाती मचकाती आभा, 
प्रियतम चंदा मेघ फॅंसा है। 
रजनी गंधा सुरभित कुसुमित, 
रजनीकांत हिय मुदिता है। 

लाल गुलाबी बनी किशोरी, 
कुसुम कुमुदिनी चारु खिला है। 
आड़ हटा बादल से चंदा, 
रजनीकान्ता नज़र बचा है। 

प्रेमातुर नवप्रीत चन्द्रिका, 
आलोकित शृंगार रिझा है। 
पौष पूर्णिमा शीतल रातें,
आलिंगन चाँदनी प्रिया है। 

कामातुर अभिसार मिलन मन, 
चन्द्रकला रति चाँद रिझा है।
देख छिपा चाँद बादल मुस्काए, 
प्रेम पाश में चाँद फॅंसा है। 

सुनो चाँद नव प्रीत मीत से, 
समझदार प्रिय प्रीति निशा है। 
निशा कान्त रजनीश प्रियंका, 
विधिलेखी चन्द्रिका प्रिया है। 

समझाऊँ मैं सुता रजनी, 
निशा सोम जीवन्त नशा है। 
इन्तज़ार कर रही चन्द्रिका, 
शरद्काल आलोक प्रभा है। 

प्रीत रसायन चाँद बने तुम, 
शीतल कोमल गात्र चखा है। 
इन्दुवर जा पास चाँदनी, 
छोड़ ओट मुझे पकड़ रखा है। 

अस्मित पूर्णिम सोम प्रेम मुख, 
मिलन चाँदनी चाँद चला है। 
सहसा रजनी तिलक लगाई, 
मयंक! चहुॅं नवमीत प्रभा है। 

है सौतन लघु बहन चन्द्रिका, 
सदानंद अवसर आभा है। 
प्राणनाथ निशि कान्त कान्ता, 
पूर्ण शोभित षोडश कला है। 

लौट आना पूर्व कुसुमाकर, 
वरना हो नव किरण उषा है। 
जीवन साथी जन्म जन्म प्रिय, 
भूलना न निशि प्रथम प्रिया है। 


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