इस मासूम से हसीन चेहरे पर ये तल्ख़ कैसा है - ग़ज़ल - दिलीप वर्मा 'मीर'

अरकान : फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलात
तक़ती : 212  1222  212  12221

इस मासूम से हसीन चेहरे पर ये तल्ख़ कैसा है,
हम तेरी निगाहों में फिर ये अश्क क्यूँ छलका है।

त'आसुब किसी मज़हबी नुमांइदों से मुझे कहाँ,
पर इंसान ज़हराब हुआ है जैसे बा-ख़ुद ख़फ़ा है।

ज़रा सलीक़े से उठाना अपनी बिखरी ज़ुल्फ़ों को,
कई आशिक़ हो जाएँगे सोच कर कि ये अदा है।

मुझे तेरी बे-वफ़ाई का कोई रंग-ए-मलाल नहीं,
कि पहले से तुने रूख़सती-ए-जहाँ सोच रखा है।

ये विरानियाँ ये उदासियाँ या ग़म के साए 'मीर',
लगता है इस ख़्वाबगाह में पहले कोई सोया है।

दिलीप वर्मा 'मीर' - सिरोही (राजस्थान)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos