हिंदी भाषा - दोहा छंद - संगीता गौतम 'जयाश्री'

माँ जैसी ममतामयी, पिता जैसा दुलार।
गुड़ जैसी मीठी लगे, मिश्री जैसी बहार॥

रस में जैसे आम है, शक्कर जैसा घोल।
बहता है मीठा शहद, निकले जब यह बोल॥

ख़ूब आशीष दे सदा, और लुटाए स्नेह।
फिर सुरक्षा ऐसी मिले, जैसे अपना गेह॥

हिंदी भाषा लोक माँ, सरल सहज है भाव।
जब पढ़ने इसको लगे, बढ़ता जाए चाव॥

ये जग का सिरमौर है, हिंदी है अभिमान।
तपोवन की भूमि लगे, संस्कार की खान॥

संगीता गौतम 'जयाश्री' - कानपुर नगर (उत्तर प्रदेश)

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