स्थिरता में जीवन - कविता - ऋचा गुप्ता

खुले आकाश के नीचे इक्ट्ठा हुआ जल
बादलों का प्रतिबिंब जैसे ज़मीं से झाँकता महल
चारों ओर हरियाली दूब और चहल पहल
आँखें और तरंगों के जादू से वाष्पित फ़सल
धरती का शृंगार है करती वर्षा सफल
उदक और उम्मीदों से खिलते अनेकों कमल
समय कभी ना रूकता होता बड़ा ही तरल
बुलंदियों की संभावनाओं पर निर्भर विश्व सकल
छूना है आकाश तो आओ करें अमल
स्थिरता में जीवन ढूँढ़ें हम नवल धवल।

ऋचा गुप्ता - जमालपुर (बिहार)

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