देना है इनकम टैक्स - कविता - गणपत लाल उदय

रह जाएगा सब कुछ एक दिन यही पर मेरे यारों,
इस‌ धन और दौलत को कोई इतना नहीं सवारों।
देना है इनकम टैक्स प्रत्येक साल नियम बनालों,
न करो चोरी इनकम टैक्स की न छुपाओ प्यारों॥

कर्तव्य अपना ये समझो और सबको समझाओ,
आयकर वक़्त पर चुकाकर समझदारी दिखाओ।
देश तरक़्क़ी में हिस्सा देकर फ़र्ज़ सभी निभाओ,
काला धन जमा कर कोई ग़रीब ‌को ना सताओ॥

थोड़ा थोड़ा यही भुगतान बन जाता अच्छी आय,
जिसे प्राप्त कर सरकार विकास कार्य में लगाए।
ये बड़े-बड़े उद्योगपतियों से‌ होती ‌है अच्छी आय,
देश की जनता सुविधाओं में जो पूँजी यह जाए॥

जिसके लिए निर्धारित है साल-भर की यह आय, 
नवम्बर से काटी जाती ये किस्तें जितनी है आय।
अरबपति खरबपति पर लगता है ये टैक्स विशेष,
औरतों को देय है विशेषकर छूट उनकी ये आय॥

अपने अपने हृदय को सभी साफ़ करते ही रहना,
बिना आयकर दिए कोई व्यक्ति देश में ना रहना।
ज़िम्मेदारी है ये सभी की छापेमारी से सब बचना,
ना बनना कोई बेइमान टैक्स समय से देते रहना॥

गणपत लाल उदय - अजमेर (राजस्थान)

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