मैंने तो कभी लिखा ही नहीं - कविता - मयंक द्विवेदी

मैंने तो कभी लिखा ही नहीं,
यह मन के उद्गार है।
कुछ टीस रही होगी दिल में,
ये इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
मैंने शब्दों को सँजोया नहीं,
ये किसी और का भाष है,
जिव्हा पर मेरे सरस्वती का वास है।
मन मस्तिष्क में मेरे छाया कोई प्रकाश है,
मन के अश्वो की लगाम किसी और के हाथ है।
कभी सोचा ही न था जीवन में कहाँ उतार कहाँ चढ़ाव है,
सब मन के अधीन है पर मन कहाँ लीन,
यह मन ही जानता है कहाँ प्रारम्भ कहाँ विराम है।
रुक ना सकूँ चलता चलू अविरल,
मेरे नहीं ये किसी और के प्रयास है,
मेरे शब्द मेरे नहीं ये किसी और का भाष है।
मैंने तो कभी लिखा ही नहीं
यह मन के उद्गार है।

मयंक द्विवेदी - गलियाकोट, डुंगरपुर (राजस्थान)

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