संदेश
कलाकार - कविता - रमाकांत सोनी
कला कौशलता दिखलाते कलाकार कहलाते हैं, अपने हुनर से दुनिया में यश परचम लहराते हैं। चित्रकला संगीत साहित्य जिन से गहरा नाता है, सृजन शि…
कालभोज की गौरव गाथा - कविता - संगीता राजपूत 'श्यामा'
कालभोज की गौरव गाथा आओ तुम्हे सुनाते हैं, धरती मेवाड़ी जन्मे योद्धा वीर सभी कहलाते हैं। सन् सात सौ तेरह में जन्मा भीलो ने बप्पा नाम दिय…
प्रेयसी - कविता - स्नेहा
प्रेयसी तो प्रेयसी होती हैं चाहे वह पत्नी के रूप में हो रुक्मिणी जैसी, या प्रेमिका के रूप में हो राधा जैसी, या फिर भक्ति के रूप में हो…
इच्छा शक्ति - कविता - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
इच्छा शक्ति हो अगर प्रबल, तो ईश्वर बनाता उसे सफल। कुछ कभी जगाइए सदिच्छा, ज़रूर पूरी करेगा वही इच्छा। संकल्प जो हम करेंगे मन में, वो साथ…
ऐ बादल! - कविता - नूर फातिमा खातून 'नूरी'
तपती धरती पर तरस खाओ ना, ऐ बादल! अब तो बरस जाओ ना। सूख रहें हैं सारे खेत खलिहान, है भीषण गर्मी शाम चाहे बिहान। पशु-पक्षी प्यासे फड़फड़…
अग्निवीर - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
हम अग्निवीर सीमा प्रवीर, बलिदान राष्ट्र पथ जाते हैं। हम शौर्यवीर गंभीर धीर, स्वाभिमान विजय रण गाते हैं। हम महाज्वाल हैं क्रान्ति अन…
अपनी खोल से निकलकर - कविता - सूर्य मणि दूबे 'सूर्य'
कभी अपनी खोल से निकलकर, किसी के मन में झाँक कर देखो। किसी के दुख दर्द को, मन की आँखों से आँक कर देखो। उनकी परिस्थितियों में जाकर, एक प…
काँटों से अपनी यारी - कविता - राकेश राही
फूलों से इश्क़ क्या राही काँटों से अपनी यारी, काँटों की चुभन में वफ़ा मोहब्बत से है प्यारी। इश्क़ के बाज़ार में दर्द-ओ-ग़म लेकर खड़े रहे, लु…
रिज़ल्ट - लघुकथा - डॉ॰ कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव
आज कमलेश के बेटे राहुल का रिज़ल्ट निकलने वाला था। साथ ही उसकी बेटी गुड़िया का हाई स्कूल का रिज़ल्ट भी आने वाला था। राहुल को रिज़ल्ट की उतन…
ख़ुद के लिए जिओ - कविता - नृपेंद्र शर्मा 'सागर'
कभी ख़ुद के लिए जी कर देखो, ज़िंदगी शायद रास आ जाए। अभी जो बहुत दूर लगती हैं, शायद वे ख़ुशियाँ पास आ जाए। मुमकिन है मिट जाएँ उदासी के घेर…
कृषक - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
कृषक का जीवन काँटों से भरा है, शीत ग्रीष्म बरखा से कब वे डरा है। विपत्तियों के पहाड़ सर पे उठाएँ, वह हँसता चेहरा खेतों में खड़ा है। सा…
पिता - कविता - कुमुद शर्मा 'काशवी'
पिता शब्द ही अनमोल है, इसका नहीं कोई मोल है। पिता ही संघर्ष का दूसरा नाम है, जिसके बिना जीवन अनाम है! जो उँगली पकड़ चलना सिखाते है, हर…
सबका जीवन आनंदमय बना दे - कविता - रविंद्र दुबे 'बाबु'
मिले मुंडेर पर, सोंधी-सोंधी ताज़ी हवा का, ये झोंका जो, कभी धूप खिले, कभी छाँव बने कुदरत ने रंग बिखेरा जो। आसमान में, हलचल करती काली घट…
पिता - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
धरा पर जिसने हमको लाया, पकड़ के उँगली चलना सिखाया। पुरुष नहीं वह देव हैं, चरणों में जिनके संसार समाया। बिखरे ना कभी भविष्य हमारा, संस्…
बारिश - कविता - शालिनी तिवारी
बिन मौसम ही आ पहुँची है, यह बारिश कितनी अच्छी है। मिट्टी की ख़ुशबू सौंधी सी, और हवा भी महकी-महकी है। दिन में ही चाँदनी खिल गई, तपती हुई…
तुम मुझसे कह रही थी - कविता - पारो शैवलिनी
दो दिन की मुलाक़ात में दुनिया बदल गई थी। हम तुम में खो गए थे तुम मुझमें खो गई थी।। तन्हाईयों में पाकर किया प्यार मुझको जी भर पागल स…
अच्छे पड़ोसी - लघुकथा - गोपाल मोहन मिश्र
लिफ़्ट से अपने दसवीं मंजिल स्थित कमरे में चढ़ते हुए मैंने नोटिस पढ़ा "श्रीमती मुखर्जी का एक सौ रुपए का नोट कहीं गुम हो गया है। पान…
क़दम - कविता - अवनीत कौर 'दीपाली'
क़दमों में क़दम रख चली थी मैं किसके साथ वो क़दम मुझे याद नहीं किसका रहा वो साथ धुँधली अमिट कुछ यादें हैं बहुत मजबूत थे, वो पाँव,हाथ न लड़…
छाँव सा है पिता - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
ग़लतफ़हमी है के अलाव सा है पिता, घना वृक्ष है पीपल की छाँव सा है पिता। लहजा थोड़ा अलग होता है माना पर प्रेम अंतस में लबालब भरा है, अपने प…
मेघ - कविता - स्नेहा
बादल आते हैं चले जाते हैं... बिन बरसे फिर आते हैं आसमाँ पे छाते हैं चले जाते हैं... बिन बरसे आज निवेदन करती हूँ... ऐ मेघ! अबकी जो आए ह…
तेरी यादें - कविता - रेखा टिटोरिया
यादों के गलियारे से जब भी पीछे जाती हूँ तेरी यादें तंग करती हैं। यादों के तानो बानो से कभी उधेड़ूँ कभी बनूँ इन उलझे सुलझे धागों में जब…
सजन अब आने वाले हैं - गीत - अभिषेक मिश्रा
पपीहा धीरे-धीरे बोल सजन अब आने वाले हैं! आने वाले हैं सजन अब आने वाले हैं!! पपीहा धीरे-धीरे बोल सजन अब आने वाले हैं! अंतर्मन के पट तू …
ज्ञान की खोज - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
ज्ञान की खोज में हम मृगतृष्णा की तलाश जैसे भटकते रहते हैं, अपने अंदर झाँकना तो नहीं चाहते हैं, ज्ञान को लेना ही नहीं चाहते। बस अपनी बे…
वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई - कविता - राघवेंद्र सिंह
स्वाभिमान के रक्त से रंजित, हुई धरा यह प्रिय पावन। हिला हुकूमत का सिंहासन, और हिला सन् सत्तावन। राजवंश की शान थी जागी, जाग उठा वीरों क…
क़लमकार - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
कविता में क्या लिखोगे कवि? शृंगार, सौंदर्य के गीत कामिनी कंचन के आर्वत– नहीं नहीं लिखो– शहीदों का बलिदान भ्रष्टाचार का उन्मूलन दहेज कन…
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