अच्छे पड़ोसी - लघुकथा - गोपाल मोहन मिश्र

लिफ़्ट से अपने दसवीं मंजिल स्थित कमरे में चढ़ते हुए मैंने नोटिस पढ़ा "श्रीमती मुखर्जी का एक सौ रुपए का नोट कहीं गुम हो गया है। पाने वाले कमरा नं॰ 65 में पहुँचा देने की कृपा करें।"

सूचना पढ़कर मुझे बड़ा दुख हुआ। श्रीमती मुखर्जी एक अनाथ ग़रीब बुढ़िया हैं और अड़ोस-पड़ोस के छोटे-मोटे काम करके अपना भरण-पोषण करती हैं।

क़रीब दो घंटे के बाद मैंने उनका दरवाज़ा खटखटाया। उन्होंने दरवाज़ा खोला। लेकिन चेहरे को देखने से लग रहा था कि वह अपना पैसा वापस पा गई हैं।

मेरे पूछने पर वह बोली "हाँ जी, मुझे मेरा पैसा मिल गया है। दूसरी मंजिल वाले वैद्य साहब को मिला था। श्री रामअवतार ने भी उसे पाया था। शायद आपको भी मिला है! परन्तु आप सबको मिलने से पूर्व ही वह मुझे अपने कोट की जेब से मिल गया था।"

"कृपा करके पैसे मिलने की सूचना जल्दी से नोटिस बोर्ड पर टाँग दीजिए वर्ना कुछ औरों को भी वह मिल जाएगा।"

गोपाल मोहन मिश्र - लहेरिया सराय, दरभंगा (बिहार)

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