क़दम - कविता - अवनीत कौर 'दीपाली'

क़दमों में क़दम रख
चली थी मैं किसके साथ
वो क़दम मुझे याद नहीं
किसका रहा वो साथ
धुँधली अमिट कुछ यादें हैं
बहुत मजबूत थे, वो पाँव,हाथ
न लड़खाड़ने दिया था मुझे
निस्वार्थ प्रेम का वो नाथ। 
हाथ पकड़ अपने अनुज का
चलती हूँ जो साथ अर्भक
अमिट यादें, हो अभिनव
मानस में करती सुखद वास
गर्व अनुभूति होती हैं ख़ास
सर्वदा गुरुता कामना हैं
पग चले पग के साथ। 

अवनीत कौर 'दीपाली' - गुवाहाटी (असम)

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