रविन्द्र दुबे 'बाबु' - कोरबा (छत्तीसगढ़)
सबका जीवन आनंदमय बना दे - कविता - रविंद्र दुबे 'बाबु'
सोमवार, जून 27, 2022
मिले मुंडेर पर, सोंधी-सोंधी
ताज़ी हवा का, ये झोंका जो,
कभी धूप खिले, कभी छाँव बने
कुदरत ने रंग बिखेरा जो।
आसमान में, हलचल करती
काली घटा, मँडराने लगी,
कभी काली घटा, कभी साफ़ छटा
हमको तो बड़ा, सुहाने लगी।
खड़े पेड़, इतराने लगे
शाखाओं के बाहें, खोल जगे,
कभीं इधर हिले, कभी उधर उड़े
पत्ते भी, सर-सर गाने लगे।
शीशम, पीपल, नीम और बड़
मोर भी, नाचे पंख फैलाए,
बादल की गर्जन, आवाज़ों संग
अट्टहास करे, हम में भ्रम फैलाए।
मधुर हवा की, बयार लिए
कोयल की, मीठी कुक सुने,
कलरव करती, चिड़ियों के संग
घर बैठ प्राकृतिक, गान सुने।
हल्की-हल्की बारिश, की ये बुँदे
बदन को ठंडक, देते बड़े,
मन मतवाला, हो जाता है
गर्मी से राहत, पाते बड़े।
जब बहती जाए, जल की धारा
धरा के कंठ, तराने लगी,
नव तरुण, की तरुणाई
खेतों मे मस्ती, दिखाने लगी।
क्यों प्रकृति से, हम दूर हुए
ये सोचने मन, मजबूर हुआ,
मानवता की ख़ातिर, सृष्टि भी
सब कष्ट सहन, मजबूर हुआ।
यदि ऋतु चक्र, चले सही से
हरियाली का जाल बिछा दे,
प्रकृति को सहेजे, कुछ हम भी
सबका जीवन, आनंदमय बना दे।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर