ज्ञान की खोज - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

ज्ञान की खोज में हम
मृगतृष्णा की तलाश जैसे
भटकते रहते हैं,
अपने अंदर झाँकना तो नहीं चाहते हैं,
ज्ञान को लेना ही नहीं चाहते।
बस अपनी बेबसी का रोना रोते रहते हैं
इधर उधर भटकते रहते हैं
ख़ुद को पीड़ित असहाय मानते हैं।
अब तो भटकना बंद कीजिए
अपने भीतर के ज्ञान के प्रकाश को
जीवन में उतार लीजिए
ज्ञान हमारे आपके भीतर है
बस उसे जीवन में उतार लीजिए,
ज्ञान की खोज में भटकना बंद कीजिए। 

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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