नृपेंद्र शर्मा 'सागर' - मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
ख़ुद के लिए जिओ - कविता - नृपेंद्र शर्मा 'सागर'
मंगलवार, जून 28, 2022
कभी ख़ुद के लिए जी कर देखो,
ज़िंदगी शायद रास आ जाए।
अभी जो बहुत दूर लगती हैं,
शायद वे ख़ुशियाँ पास आ जाए।
मुमकिन है मिट जाएँ उदासी के घेरे,
हँसी की कुछ बहार छा जाए।
कभी ख़ुद के लिए जीकर देखो,
ज़िंदगी शायद रास आ जाए।
नाज़ नखरे उठाते हो सबके,
फिर भी तिरस्कार ही क्यों पाते हो।
माना ये ज़िम्मेदारियाँ हैं अपनी,
इन्हें बोझा से क्यों उठाते हो।
थोड़ा सा उनको भी निभाने दो,
शायद रिश्तों की समझ जाए।
कभी ख़ुद के लिए जीकर देखो,
ज़िंदगी शायद रास आ जाए।
अभी जो बहुत दूर लगती हैं,
शायद वे ख़ुशियाँ पास आ जाए।।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर