कालभोज की गौरव गाथा
आओ तुम्हे सुनाते हैं,
धरती मेवाड़ी जन्मे योद्धा
वीर सभी कहलाते हैं।
सन् सात सौ तेरह में जन्मा
भीलो ने बप्पा नाम दिया,
कृपा हुई हारित ऋषि की
एकलिंग का तब उद्घोष किया।
आदेश मिला जब गुरु का
मानमोरी को हराया था,
जीत लिया चित्तौड़ दुर्ग को
केसरिया फिर लहराया था।
गुहिल राज की डोर संभाली
अब दुश्मन थर्राया था,
छक्के छूटे तब यवनो के
अरबो पर संकट छाया था।
सन् सात सौ पैतीस में
हज्जात की फ़ौज आई थी,
खदेड़ दिया दुश्मन को घर तक
आफत सबकी आई थी।
बप्पा रावल कहती जनता
बढ़के सबने सम्मान किया,
एकलिंग का दर्शन पाकर
सिंहासन फिर छोड़ दिया।
बप्पा के नाम से डरते योद्धा
चार सौ साल तक अरब झुक गए,
जैसे विशाल पर्वत के सम्मुख
दल खच्चर के रूक गए।
संगीता राजपूत 'श्यामा' - अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)