पिता - कविता - कुमुद शर्मा 'काशवी'

पिता शब्द ही अनमोल है,
इसका नहीं कोई मोल है।
पिता ही संघर्ष का दूसरा नाम है,
जिसके बिना जीवन अनाम है!
जो उँगली पकड़ चलना सिखाते है,
हर परेशानियों से लड़ना सिखाते है।
अपने मज़बूत कंधो पर हर बोझ उठाते है,
बच्चों को खुले आसमाँ की सैर कराते है।
ख़ुद की इच्छाओं का हनन करते है,
और बच्चों के सपने पूरे करते है।
पिता ही परिवार के मुखिया है,
इनसे ही घर की बगिया है।
पिता की जेब भले ही खाली होती है,
पर बच्चों की ख़्वाहिशें हमेशा पूरी होती हैं।
रोज़ तिनका-तिनका समेटते है,
बच्चों के कल आज को सँवारते है।
शब्द इनके ज़रूर कठोर होते हैं,
पर बच्चों की हर ख़ुशी में–
इनके चेहरे पर भी मुस्कान होती हैं।
बरगद के वृक्ष सा विशाल ह्रदय रखते हो,
पर बच्चों के गम में–
आँखें इनकी भी नम होती हैं!
माँ की तरह लाड़ नहीं लड़ाते हो,
पर माँ की डाँट से सदा बचाते है।
पिता के चरणों में शत शत नमन है,
इनकी छवि को शब्दों में पिरोना नहीं सरल हैं।

कुमुद शर्मा 'काशवी' - गुवाहाटी (असम)

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