चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)
पिता - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
रविवार, जून 26, 2022
धरा पर जिसने हमको लाया,
पकड़ के उँगली चलना सिखाया।
पुरुष नहीं वह देव हैं,
चरणों में जिनके संसार समाया।
बिखरे ना कभी भविष्य हमारा,
संस्कारों का अद्भुत ज्ञान दिया।
हर क़दम पर अपने सफल रहे,
ऐसा दृढ़ता का वरदान दिया।
रोए ना हम भोजन ख़ातिर,
ख़ुद सूखा भोजन है खाया।
पुरुष नहीं वह देव हैं,
चरणों में जिसके संसार समाया।
हर सुख को हम प्राप्त करें,
अथक परिश्रम वो करते हैं।
हर बाधा हमसे दूर रहे,
ऐसी दुआ हमेशा करते हैं।
हारे ना हम युद्ध कभी,
ऐसा कौशल है सिखाया।
पुरुष नहीं वह देव हैं,
चरणों में जिसके संसार समाया।
देना ना कभी कष्ट पिता को,
विनम्र निवेदन करता हूँ।
स्वर्ग का सुख मुझको मिलता,
जब चरणों में उनके रहता हूँ।
सत्कर्मों के गाथा को जिसके,
त्रिदेवों ने भी है गाया–
पुरुष नहीं वो देव हैं,
चरणों में जिसके संसार समाया।
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