संदेश
जन्म दिवस की मंगलकामना - गीत - भगवत पटेल 'मुल्क मंजरी'
ख़ुशियों की सौग़ात लिए जन्म दिवस तुम्हारा आया है। नित नूतन तुम काज करो, कल नहीं तुम आज करो। सबको हरदम प्यार करो, हर दिल पर तुम राज करो। …
दारू या मेहर - लोकगीत - संजय राजभर 'समित'
दारू या मेहर फरियाईलय हो फरियाईलय अब ना रहब भवनवा। बहुतय परेशान कईलय सजनवा, अब ना रहब भवनवा। दारू या... गहना गुरिया थरिया लोटा बेचाइल…
जीवन सार - कविता - अनूप मिश्रा 'अनुभव'
कभी सुमन सेज सम कोमल, कभी तीक्ष्ण शूल बिछौना है। परिवर्तनशील जीवन शैया पर, सबको जागना सोना है। कभी ग्रीष्म की भीषण गर्मी, कभी शीतल शरद…
कभी तुम्हारी झलक दिखी थी - ग़ज़ल - शुचि गुप्ता
अरकान : मुफाइलातुन × 4 तक़ती : 12122 x 4 कभी तुम्हारी झलक दिखी थी, नज़र वहीं पर रुकी हुई है, ज़रा सुनो तो सनम ग़ज़ल तुम, सदा हमारी छुपी हुई…
तिरस्कृत मन - कविता - जगदीश चंद्र बृद्धकोटी
स्तब्ध मन हो रहा है जब क्रोध बाँटा जा रहा है, अनगिनत अवहेलनाओं से पुकारा जा रहा है। ख़ुद की कुंठा को छिपाने मुझको रोका जा रहा है, कटु …
उलझी हुई है ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ सँवार दे - ग़ज़ल - शमा परवीन
अरकान : मफ़ऊलु फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन तक़ती : 221 2121 1221 212 उलझी हुई है ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ सँवार दे, दरया-ए-ग़म में डूबी हूँ मुझको …
मुझे इंतज़ार है - कविता - अबरार अहमद
आँखों के अंतिम छोर पर जिस नमी को मैं महसूस करता हूँ हर रोज़, एक अधूरी नींद के बाद निःसंदेह, वह उन आँसुओं का उत्तरार्ध है जिन्हें रोक दि…
तुम्हारे बिना अधूरा हूँ - कहानी - अंकुर सिंह
"तलाक़ केस के नियमानुसार आप दोनों को सलाह दी जाती हैं कि एक बार काउंसलर से मिलकर आपसी मतभेद मिटाने की कोशिश करें।" तलाक़ केस क…
बेपरवाह शराबी - कविता - रंजीता क्षत्री
शराबी का क्या काम? गाली-गलौज और अपनों का जीना करे हराम। शराबी की हालत कैसी? बिल्कुल नासमझ... पागल जैसी। शराबी के पीठ पीछे सब छि-छि करत…
खोटा कवि हूँ मैं - कविता - गणेश भारद्वाज
मैं कोई फ़नकार नहीं हूँ, औरों की सरकार नहीं हूँ। लिख देता हूँ मन की पीड़ा बेदर्द कलमकार नहीं हूँ। पन्ने और सजाते होंगे, कलमी हार बना…
मन की उड़ान - कविता - प्रवल राणा 'प्रवल'
मिलन की उत्सुकता, मन हो रहा विकल। है निर्भर भाग्य पर, कामना होगी सफल।। आल्हाद है मन में, कुछ है विकलता। आशंका भी होती रही, छिपी न हो …
मालिक नहीं माली बने हम अगर - ग़ज़ल - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
अरकान : मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन फ़ाइलुन तक़ती : 2212 2212 212 मालिक नहीं माली बने हम अगर, हर ताले की ताली बनें हम अगर। सूरज उगा तो, हो…
वजह हो तो बताए मुझको मुस्कुराने की - ग़ज़ल - एल॰ सी॰ जैदिया 'जैदि'
अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ेलुन तक़ती : 1222 1222 1222 22 वजह हो तो बताए मुझको मुस्कुराने की, मिलती है मोल दुकान बताए किरान…
सैनिक - कविता - शीतल शैलेन्द्र 'देवयानी'
तीन रंगों में लिपटा सम्मान मिला मुझे शहादत पे, तिरंगे का सम्मान कफ़न जो मिला देश की इबादत पे। जब सुना संदेश शहीदी थम गया स्वर पिता का…
ज़िंदगी - कविता - डॉ॰ सहाना प्रसाद
अजीब है यह ज़िंदगी बचपन गुज़र गया, जवानी बीती, बुढ़ापा आ गया पर समझ नही आया। कैसे संभाले दूसरो को, कैसे संभाले ख़ुद को, जब सोचा हो गए सय…
परिधान - कविता - बृज उमराव
सादगी पूर्ण स्वच्छ सुन्दर, परिधान प्रभावी सदा गरल। आकर्षण का केन्द्र बिन्दु, आवरण सदा तन के ऊपर।। बदन सुरक्षित मन संतृप्त, दस में अलग …
शाम उतर आई है दिल में - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
शाम उतर आई है दिल में, यादों की सुंदर महफ़िल में। कभी सताती कभी हँसाती, बातें उनकी दिल ही दिल में। शाम उतर आई है दिल में। यादों की... 2…
हौसला - कविता - नृपेंद्र शर्मा 'सागर'
सुन पथिक तू रुक ना जाना, मुश्किलों में झुक ना जाना। हो परीक्षा कुछ भी चाहे, तू ना अपना सर झुकाना। हौसलों से जीत होगी, पहले ख़ुद को आज़मा…
परम सत्य - कविता - सूर्य मणि दूबे 'सूर्य'
कल क्या होगा, शायद पता नहीं, क़िस्मत का क्या फेरा, शायद पता नहीं। आज को जी लो हँस कर, वही तुम्हारा है, कल उस पर छोड़ो जिसका ये जग सारा…
सभी बदगुमानी को दिल से निकालें - ग़ज़ल - अरशद रसूल
अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन तक़ती : 122 122 122 122 सभी बदगुमानी को दिल से निकालें, हमें तुम संभालो, तुम्हें हम संभालें। अभी से …
अनोखा खेल विदाई का - कविता - रोहताश वर्मा 'मुसाफ़िर'
बचपन के सब खेल खिलौने... धीरे-धीरे दूर हुए! माँ के आँचल में छुप्पम-छुपाई, मिट्टी के मंदिर चकनाचूर हुए! धीरे-धीरे पढ़ना-लिखना आया, बढ़…
भारत माता की जय - गीत - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
बाग-बगीचे गाँव गलिन में भारत माता की जय। बुलबुल बोले तोता बोले मोर कोकिला डाली। खेतों में भी झूम-झूम कर यही बोलती बाली। शिशु भी वन्देम…
क्या तुमने कवि को देखा है? - कविता - राघवेंद्र सिंह
पूछ रहा है एक कवि, क्या तुमने कवि को देखा है? ऊपर से नीचे तक कैसा, क्या रवि के जैसी रेखा है? क्या है उसके हाथों में, क्या दुबला पतला द…
जीवन - कविता - अभिषेक मिश्रा
जीवन- प्रकृति द्वारा उपहार दिए गए कुछ फूल, कुछ काँटे... पंछियों की चहचहाती मंडली, कोयल की बोली... उगते हुए सूर्य से आती सतरंगी किरणे, …
अरुणिम उषा है खिली-खिली - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
पंखुड़ियों में सिमटी कलियाँ, अरुणिमा उषा है खिली-खिली। मुस्कान सुरभि यौवनागमन, मधुपर्क मधुर नव प्रीति मिली। श्री प्रभा उषा विलसित…
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