अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
तक़ती : 122 122 122 122
सभी बदगुमानी को दिल से निकालें,
हमें तुम संभालो, तुम्हें हम संभालें।
अभी से यह जीवन बिखरने लगा है,
नज़र एक दूजे की जानिब घुमा लें।
अगर ग़म की तौहीन करनी नहीं है,
चलो बंद कमरे में आँसू बहा ले।
कभी दरमियाँ तुम किसी को न लाना,
हमें तुम मना लो, तुम्हें हम मना लें।
यहाँ कोई अपना हितैषी नहीं है,
अभी वक़्त है आओ ख़ुद को संभालें।
हमें ख़ुद लगाना है ज़ख़्मों पे मरहम,
अगर हो मुनासिब तो ख़ुद को बचा लें।
यही रतजगे फिर से' डसने लगे हैं,
लगे आँख तो ख़्वाब हम भी सजा लें।
अरशद रसूल - बदायूं (उत्तर प्रदेश)