आँखों के अंतिम छोर पर
जिस नमी को मैं महसूस करता हूँ
हर रोज़, एक अधूरी नींद के बाद
निःसंदेह, वह उन आँसुओं का उत्तरार्ध है
जिन्हें रोक दिया गया बहने से
पूरी ताक़त के साथ।
ख़्वाब भर रोना हर आँख
के नसीब में नहीं होता,
कभी सपने दगा दे जाते हैं
तो कभी आँखें।
मुझे इंतज़ार है उस रात का
जब मैं एक गहरी नींद में
रोऊँगा तुम्हारे लिए
जी भर कर।
अबरार अहमद - देवरिया (उत्तर प्रदेश)