जीवन सार - कविता - अनूप मिश्रा 'अनुभव'

कभी सुमन सेज सम कोमल,
कभी तीक्ष्ण शूल बिछौना है।
परिवर्तनशील जीवन शैया पर,
सबको जागना सोना है।

कभी ग्रीष्म की भीषण गर्मी,
कभी शीतल शरद सलोना है।
ऋतु भाँति ही सुख-दुख आए,
फिर क्यों विचलित होना है।

यहाँ संयम सुख में रखना है,
और दुख में धीर न खोना है।
कर कर कांधे सबल अपने,
सुख-दुख दोनों को ढोना है।

हो प्राप्त कभी कुछ बिन माँगे,
कभी प्राप्त से हाथ भी धोना है।
अनिश्चितताओं से भरा हुआ,
जीवन का कोना-कोना है।

कभी विजय मुकुट मस्तक पर,
कभी भार हार का ढोना है।
क्रीड़ा समान इस जीवन मे,
कभी पाना तो कभी खोना है।

मिलन का सुखद आनंद कभी,
कभी वियोग शोक में रोना है।
जीवन के इस अद्भुत मंच पर,
भाँति-भाँति के अभिनय होना है।

सच मानो एक खेत है जीवन,
यहाँ कर्म बीज सभी को बोना है।
यदि बीज उत्तम हो 'अनुभव',
निश्चय उत्तम फल होना है।

संदेह क्रोध ईर्ष्या और अहम,
अभिशाप जीवन मे होना है।
माटी तुल्य बना दे उसको,
जीवन जिसे कहते थे 'सोना है'।

हुआ कल क्या, हो रहा क्या आज,
ना जाने कल क्या अब होना है।
इन बातों में उलझ-उलझ,
संयम, मति, धीर न खोना है।

जीवन रूप बदलने को मूरख,
व्यर्थ करते जादू टोना है।
ये जीवन रूप रचयिता वो हैं,
जिनके आगे सब बौना है।

कर्म ही है निर्णायक जीवन मे,
किसे क्या मिलना क्या खोना है।
कहता है 'अनुभव' कर्म करो,
जो होना है कर्मों से होना है।।

अनूप मिश्रा 'अनुभव' - उत्तम नगर (नई दिल्ली)

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