अरकान : मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन फ़ाइलुन
तक़ती : 2212 2212 212
मालिक नहीं माली बने हम अगर,
हर ताले की ताली बनें हम अगर।
सूरज उगा तो, हो गई रोशनी,
दिनमान की लाली बनें हम अगर।
कितने भरम ख़ुद हमने पालें हुए,
भीतर से कुछ खाली बनें हम अगर।
फैलाएँ ख़ुश्बू हम बहुत दूर तक,
इक फूलों की डाली बनें हम अगर।
जो चल रहा है, आगे चलता रहें,
ख़ुद अपने वनमाली बनें हम अगर।
नागेंद्र नाथ गुप्ता - मुंबई (महाराष्ट्र)