बाग-बगीचे गाँव गलिन में
भारत माता की जय।
बुलबुल बोले तोता बोले
मोर कोकिला डाली।
खेतों में भी झूम-झूम कर
यही बोलती बाली।
शिशु भी वन्देमातरम् बोलें
बजा-बजा कर ताली।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
नहीं किसी को भय।
जन्म भूमि कहती बेटे से
माटी मिलती माटी।
क़ब्र बनेगी इसी भूमि में
भूल गया परिपाटी।
खेल-कूद ले क्षणिक जीवनी
अर्थी गंगा घाटी।
मिल कर बोलें सभी प्रेम से
मातृभूमि की जय।
खाया पिया अन्न जल फिर भी
भितरघात की बातें।
गोदी में निश्चिन्त सो गए
काटीं जीवन रातें।
किसी ग्रंथ में कहाँ लिखा है
माँ से कर लें घातें।
जहाँ विश्व में भारतीय हैं
गूँजे जय हिन्द की लय।
शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)