दारू या मेहर - लोकगीत - संजय राजभर 'समित'

दारू या मेहर फरियाईलय
हो फरियाईलय अब ना रहब भवनवा। 
बहुतय परेशान कईलय सजनवा,
अब ना रहब भवनवा।
दारू या...

गहना गुरिया थरिया लोटा बेचाइल, 
भूख से बिलखे अँखियाँ कचराइल।
बचवन क लालन करवाईलय 
हो करवाईलय अब ना रहब भवनवा। 

ससुरू के टीबी खाँसय दिन-रतिया, 
सासू के मोतियाबिन लवके न रहिया।
खेत बेच बिकिन दवा करवाईलय 
हो करवाईलय अब ना रहब भवनवा। 

बेहल्ला भईलय बा देवरा फुकऊना,
देवय के बा अबहीं ननदो क गवना। 
'समित' संगी के अपने समझाईलय, 
हो समझाईलय अब ना रहब भवनवा। 

संजय राजभर 'समित' - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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