कभी तुम्हारी झलक दिखी थी - ग़ज़ल - शुचि गुप्ता

अरकान : मुफाइलातुन × 4
तक़ती : 12122 x 4

कभी तुम्हारी झलक दिखी थी, नज़र वहीं पर रुकी हुई है,
ज़रा सुनो तो सनम ग़ज़ल तुम, सदा हमारी छुपी हुई है।

रफ़ीक़ उम्मीद एक तुमसे, पलट इसी राह लौट आना,
कहीं हवाएँ बुझा नहीं दें, शमा अभी तक जली हुई है।

कशिश लबों की गुलाब शबनम, थिरक रही प्रीत प्यास अब है,
क़दम हमारे बहक न जाएँ, महक ज़हन में बसी हुई है।
 
उदास अब तो कटे न रातें, चमक रहा चाँद है फ़लक पे,
चलो मधुर हम धुनें बनाएँ, सितार सरगम सजी हुई है।

सरोज खिलता रहे हमेशा, दुआ ख़ुदा से सदा यही है,
सनम भरो माँग में सितारे, जनम-जनम 'शुचि' तिरी हुई है।

शुचि गुप्ता - कानपुर (उत्तरप्रदेश)

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