क्या तुमने कवि को देखा है? - कविता - राघवेंद्र सिंह

पूछ रहा है एक कवि,
क्या तुमने कवि को देखा है?
ऊपर से नीचे तक कैसा,
क्या रवि के जैसी रेखा है?

क्या है उसके हाथों में,
क्या दुबला पतला दिखता है?
क्या चेहरे पर मुस्कान भी है,
या करुणा ही बस लिखता है?

क्या पैरों में उसके चप्पल,
क्या बाल हैं उसके घुँघराले?
क्या उसकी सरल मधुर वाणी,
क्या अपनी धुन के मतवाले?

क्या कलम लिए वह है फिरता,
क्या काग़ज़ के टुकड़े पास भी हैं?
क्या कहीं प्रकृति में विचरण है,
क्या पशु पक्षी उसके ख़ास भी हैं?

क्या नदी किनारे बैठा है,
क्या आसमान को निहार रहा?
कुछ टूटे फूटे शब्दों को,
क्या काग़ज़ पर उन्हें उतार रहा?

क्या अपने में बाते करता,
क्या उसे ख़बर है दिन या रात?
क्या है फक्कड़ या है फ़क़ीर,
क्या ठिठुरा है जब है बरसात?

क्या सचमुच कलम में है ताक़त,
क्या उसने ही सच्चाई लिखी?
क्या वही दिखाता नई राह,
क्या कहीं संघर्ष की बात दिखी?

क्या जीवन उससे हार गया,
क्या वह जीवन से हारा है?
क्या वह कविता से है अमीर,
क्या वह साहित्य का तारा है?

क्या स्वयं ही लिखना चाहा है,
या लिखने को मजबूर हुआ?
क्या कलम ही हथियार बनी,
क्या अपनों से वह दूर हुआ?

क्या कवि माँगने पर कुछ देता,
या फिर जाने ना देता?
कुछ फटी किताब के पन्नों से,
वह अपनी कविता देता।

इस जग में खोए कवि को
अब कौन है कहता! देखा है।
अब पूछ रहा है एक कवि 
क्या तुमने कवि को देखा है?

जिस दिन कह दोगे देखा है,
वह सही कहावत छवि होगी।
की जहाँ न पहुँचे रवि देखो,
वहाँ छवि कवि की होगी।

राघवेन्द्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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