मन की उड़ान - कविता - प्रवल राणा 'प्रवल'

मिलन की उत्सुकता,
मन हो रहा विकल।
है निर्भर भाग्य पर,
कामना होगी सफल।।

आल्हाद है मन में,
कुछ है विकलता।
आशंका भी होती रही, 
छिपी न हो विफलता।।

शायद होगी प्रतीक्षा,
आज ही पूर्ण।
आल्हादित मन,
उत्साह से परिपूर्ण।।

विकल मन हुआ,
आज यूँ तृप्त।
नयनों में भावनाएँ,
रहीं अव्यक्त।।

मन ही बना चातक,
मन ही विकल।
आज है प्रसन्न,
होगा क्या कल।।

अपलक निहारा,
यूँ ही निरखते।
बीत गए पल,
यूँ ही रेत से।।

मुस्कुराते अधर,
दोनों नयन सजल।
हो रहे विलग,
प्रेम है अटल।।

प्रवल राणा 'प्रवल' - ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)

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