सैनिक - कविता - शीतल शैलेन्द्र 'देवयानी'

तीन रंगों में लिपटा सम्मान
मिला मुझे शहादत पे,
तिरंगे का सम्मान कफ़न 
जो मिला देश की इबादत पे।

जब सुना संदेश शहीदी 
थम गया स्वर पिता का,
थक कर स्वर विहिन कंठ था
आज जन्म देने वाली मेरी माता का।

सूनी मांग लिए 
रास्ता देख रही थी मेरी विधवा,
व्याकुल निरीह भूख के बीच 
बच्चों का स्वर भी मौन हुआ।

बीच-बीच में भुख से
स्वर रुदन के फूट पड़ते,
जब पेट रूपी भट्टी में 
अन्न रूपी कोयले नहीं पढ़ते।

क्या यही अंत 
एक गैरतमंद शहीद का है,
या आरंभ किसी 
नई सी कहानी का हुआ है।

जो कभी देश की हर चुनौती पर 
अपना फ़र्ज़ निभाते थे,
बन चट्टान खड़े रहते 
ना पैर कभी भी डगमगाते थे।

तभी तो सवा सौ करोड़ भाई बहन मेरे
चैन की नींद सो पाते थे,
आज थक कर सो रहा हूँ मैं
बरसों बाद चैन की नींद तिरंगे में।

शीतल शैलेन्द्र 'देवयानी' - इन्दौर (मध्यप्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos