परम सत्य - कविता - सूर्य मणि दूबे 'सूर्य'

कल क्या होगा, शायद पता नहीं,
क़िस्मत का क्या फेरा, शायद पता नहीं।
आज को जी लो‌ हँस कर, वही तुम्हारा है,
कल उस पर छोड़ो जिसका ये जग सारा है।।

जो बदल सके न चाह कर भी उसकी चिंता क्या,
सत कर्म करो बस सोंचो मत फिर मिलता क्या।
कब आए कब जाना सब कुछ निश्चित है,
क्या लेकर आए क्या पाना‌ सब कुछ निश्चित है।।

कुछ जिनका रहा उधारी पिछला देना है,
जिनको हमने दिया है उनसे लेना है।
पाई-पाई होगा चुकता तो फिर चिंता क्या,
तुम बैठे बनो हिंसाबी बने बिगड़ता क्या।

ये जितने रिश्ते नाते सब देनदारी है,
यार सगे सम्बन्धी बेटा पत्नी‌ प्यारी है।
जाने किस रूप में मिले अगले रस्ते में,
चुकता होगी सब कर्मो की रंगदारी है।।

क्या परम सत्य यह सत्य परम परमात्मा है,
वो है अनन्त सागर बुँदे आत्मा हैं।
मत समझो कि इस देह तक ही सफ़र ख़त्म होगा,
बदलेगा चोगा 'सूर्य' फिर से जन्म मरण होगा।।

सूर्य मणि दूबे 'सूर्य' - गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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