जीवन-
प्रकृति द्वारा उपहार दिए गए
कुछ फूल, कुछ काँटे...
पंछियों की चहचहाती मंडली,
कोयल की बोली...
उगते हुए सूर्य से आती सतरंगी किरणे,
पत्तियों पर इठलाती ओस की बुँदे।
गाँव के मंदिरों से आती
घंटियों की मधुरम वाणी...
घर में रेडियो पर बजती
शहनाई, और भी बहुत कुछ...
जैसे-
कंडे पर रखी दूध की हाँडी
उसकी सोंधी ख़ुशबू...
दही, माखन और मक्के की
रोटी...
माँ की ममता और अनुराग
शनै-शनै:
जीवन-
गाँव की गलियों से लेकर
शहर की ऊँची अट्टालिकाओं
तक!
हिमालय की चोटी से लेकर
समुंदर की गहराइयों तक!
किसी बूढ़े कि झुर्रियों के प्रश्नों से लेकर
किसी बच्चे की किलकारियों तक!
कुछ खट्टे कुछ मीठे अनुभवों तक...
किसी अपने की आस लिए...
अंततोगत्वा...
बस घर से लेकर श्मशान तक!
अतः
जीवन ख़त्म...!
अभिषेक मिश्रा - बहराइच (उत्तर प्रदेश)