संदेश
आई दीवाली - कविता - राजकुमार बृजवासी
आई दीवाली आई दीवाली, संग में ख़ुशियाँ लाई दीवाली, आई दीवाली आई दीवाली। दीप से दीप जलाएँगे, अंधियारा दूर भगाएँगे, पटाखे नहीं जलाएँगे, पर…
दिए जलाएँ - गीत - भगवत पटेल 'मुल्क मंजरी'
आओ फिर से दिए जलाएँ। मिलकर तम को दूर भगाएँ। आडम्बर, प्रपंच, पाखण्ड से हरदम दूर रहें हम। ईर्ष्या, द्वेष कहीं न हो, न हो कोई ग़म।। छल क…
मेरे घर भी आना - कविता - सौरभ तिवारी
हे माँ लक्ष्मी! इस दीवाली मेरे घर भी आना, नहीं चाहिए सोना-चाँदी बस दो रोटी ले आना। लाल कुपोषण झेल रहा है और घर में लाचारी है, टूटे छप्…
मन का कुछ अहसास कहो जी - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेल फ़आल तक़ती : 22 22 21 121 मन का कुछ अहसास कहो जी, कोशिश कर कुछ ख़ास कहो जी। तिल भर भी बाकी हो यदि तो, मिलने की…
कुम्हार - कविता - अनूप मिश्रा 'अनुभव'
खेतों से काटकर मिट्टी, टोकरी भर-भर निज द्वारे लाता। घास फूस कंकड़ निकाल, मिट्टी को निर्मल स्वच्छ बनाता। छिड़क-छिड़क जल पुनः-पुनः, सूखे मा…
पत्ती सूखी अब गिरी - कविता - अशोक बाबू माहौर
पत्ती सूखी अब गिरी डाली से जो अधमरी-सी लटकी थी दो दिनों से। हवा बल दिखाती ताण्डव करती भूचाल मचाती पेड़-पौधों को झकझोरती और पत्ती को घस…
एक वजह काफ़ी होती है - कविता - सैयद इंतज़ार अहमद
किसी को याद करने की किसी को याद आने की, किसी के दिल की धड़कन को महसूस करके, किसी के ख़्वाब के हिस्से में धीमे से पहुँच के, उसी की होंठ प…
मेरे प्रियतम तुम चले आना - कविता - नीलम गुप्ता
मेरे प्रियतम तुम चले आना, मेरे प्राणों को गले लगाना। मुझमें कितनी बेचैनी है इसे बयाँ करूँ मैं कितने शब्दों में? तुम्हारे प्रेम-विरह मे…
राधा-कृष्ण - गीत - डॉ॰ उदय शंकर अवस्थी
श्याम रंग अंग साँवरो राधिका के संग नाचे बाँसुरी बजाए श्याम बाँसुरी बजाए नाचे राधिका के संग। मतवाली हुई जाए मलय कहाँ रुक पाए गंध फल फूल…
बेस्ट फ़्रेंड - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
जो मेरे हसबैंड थे, बस वो ही बेस्ट फ़्रेंड थे, 2 दौलत सत्ता मान प्रतिष्ठा, मेरे बदले कुछ न लेते। अगर ज़रूरत पड़ जाती, तो जलते शोले भी सह …
शीत - कविता - नंदिनी लहेजा
हो रही शांत अब तपन धूप की, हवाएँ पंख फहरा रहीं। रवि को है जल्दी वापसी की, निशा, शशि संग इतरा रही। गई वर्षा अपने घर वापस, अब शीतऋतु की …
ज़िंदगी - कविता - अभिषेक विश्वकर्मा
क्या है? कोई ख़्वाब...! या फिर हक़ीक़त... यदि ख़्वाब...! तो क्या है जीवन की सीमा के उस पार...? बहुत रहस्य है यहाँ जो मजबूर करता है कर…
ओ पौरुषेय! न मानो हारी - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
क्षणिक जीवनी यह मेला है जाने की कर लो तैयारी। बिखरा जो कुछ, उसे समेटो पर कुछ करके ऐसा जाना- फूले सदा तुम्हारी क्यारी। क्षणभंगुर जग आह…
सफ़ाई - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
रखें सफ़ाई गेह हम, स्वच्छ बने परिवार। तभी सफ़ाई देश का, रोगमुक्त आधार।। तजें लोभ इच्छा प्रबल, करें सफ़ाई सोच। मानवता हो भाव मन, हो विचार …
वेग - कविता - महेश 'अनजाना'
बहे जो वेग बनकर और कभी रुके नहीं। चाहे रास्ते हो लम्बी, मगर कभी थके नहीं। नदियाँ जो बहती हैं कलकल करती हैं। पत्थर मिले तो संग, संग मचल…
जीवन-शैली - कविता - बृज उमराव
पंच तत्व से निर्मित यह, जो प्रभु ने श्रजित करी काया। आभार करें उस शक्ति का, जिसने यह संसार रचाया।। दया प्रेम करुणा ममता, हर जीव के संग…
ग़रीबों को हमेशा ही अंधेरों में सुलाते हो - ग़ज़ल - अरशद रसूल
अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन तक़ती : 1222 1222 1222 1222 ग़रीबों को हमेशा ही अंधेरों में सुलाते हो, उन्हीं के ख़ून से घर म…
गीता का ज्ञान - कविता - डॉ॰ गीता नारायण
कृष्ण ने कहा अर्जुन से; सुनो गुड़ाकेश! मैं ऋषिकेश... तुम्हें देता हूँ वह ज्ञान विशेष... जिसे तुम्हारे अलावा आज कोई नहीं सुन पाएगा, जिस…
सिमटता गाँव - लेख - अंकुर सिंह
जीवन के तीस बसंतों को पार कर चुका हूँ, जब कभी एकांत में बैठ कर बीते हुए वर्षों का अवलोकन करता हूँ तो लगता हैं कि समय ने दीवार पर टंगे …
शजर-ए-ग़ज़ल से लाया हूँ एक शे'र फ़रियाद कर - ग़ज़ल - कर्मवीर सिरोवा
अरकान : मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन तक़ती : 2212 2212 2212 2212 शजर-ए-ग़ज़ल से लाया हूँ एक शे'र फ़रियाद कर, क़ी…
उल्लास - कविता - अर्चना कोहली
उल्लास की तरंग से मन होता प्रफुल्लित, त्यौहारों की रुत से हमारा अंतर्मन है हर्षित। अद्वितीय होते हैं सतरंगी ये सभी ही त्योहार, उमंग-उल…
जितनी बार पढ़ा है तुमको - गीत - अभिनव मिश्र 'अदम्य'
एक प्रणय के संबोधन में हमने कितने नाम दिए। जितनी बार पढ़ा है तुमको उतने ही अनुवाद किए। डूबा रहता हूँ यादों में दृग से निर्झर नीर बहे। क़…
वो प्यारा बचपन - कविता - निकिता मिश्रा
वो प्यारा बचपन पीछे जा रहा है, यादो में तेरी खोया जा रहा है। वो ज़िद कर के कुछ भी माँग लेना, वो रूठ कर किसी से कुछ भी कह देना, ऐसा बचपन…
जिस्म को चादर बनाया ही नहीं - ग़ज़ल - प्रशान्त 'अरहत'
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन तक़ती : 2122 2122 212 जिस्म को चादर बनाया ही नहीं, रात भर दीपक बुझाया ही नहीं। ज़िंदगी में जो सिखाया …
ज़िम्मेदारी - लघुकथा - गोपाल मोहन मिश्र
समय भले ही बीत जाए, हमारी ज़िम्मेदारियाँ नहीं बदलतीं। बस उन्हें समझना होता है। हर सुबह हंगामा होता था। तीन वर्ष की शुचि को स्कूल भेजना …
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