मन का कुछ अहसास कहो जी - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'

अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेल फ़आल
तक़ती : 22  22  21  121

मन का कुछ अहसास कहो जी,
कोशिश कर कुछ ख़ास कहो जी।

तिल भर भी बाकी हो यदि तो,
मिलने की कुछ आस कहो जी।

जितने भी हो आप हमारे,
खुलकर के आभास कहो जी।

पतझड़ के मौसम में भी क्या,
बाक़ी है मधुमास कहो जी।

हमने तुम्हें मुहब्बत भेजी,
पहुँच गई क्या पास कहो जी।

क्या अब तक अरमान प्रीत के,
छूते हैं आकाश कहो जी।

पहले था उतना ही 'अंचल',
अब भी है विश्वास कहो जी।

ममता शर्मा 'अंचल' - अलवर (राजस्थान)

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