जीवन-शैली - कविता - बृज उमराव

पंच तत्व से निर्मित यह,
जो प्रभु ने श्रजित करी काया।
आभार करें उस शक्ति का,
जिसने यह संसार रचाया।।

दया प्रेम करुणा ममता,
हर जीव के संग प्रदर्शित हो।
श्रष्टि समन्वय मे हो सीमित,
लक्ष्य सदा परिलक्षित हो।।

करिए सदाचार का पालन,
कदाचार प्रतिबंधित हो।
अनाचार स्थान तलाशे,
सद्भाव सर्वदा इंगित हो।।

जीवों पर हो दया भाव,
सद्भाव परस्पर बना रहे।
देश सुरक्षा जन जन रक्षा,
कोई भी न अनमना रहे।।

झूठ और आडम्बर से,
दूर तलक न रिश्ता हो।
बाग़बाँ सदा गुलज़ार रहे,
हर फूल चमन में खिलता हो।।

सत्य डगर है कठिन बहुत,
परन्तु पराजय वहाँ नहीं।
धैर्य और साहस के बल,
सफलता मिलती सर्वदा वहीं।।

काम सदा करिए ऐसा,
आहत न हो और कोई।
वृक्ष आरोपण ऐसा हो,
लाभान्वित हो हर कोई।।

ख़ुद के हित में क्या जीना,
जीवन औरों के काम आए।
परोपकार का बिम्ब बने,
संतति को सिखला जाए।।

संकल्पित हों सेवा के प्रति,
मानवता अभिमान करे।
तन तो माटी का पुतला,
मिटने पर भी गुणगान करे।।

बृज उमराव - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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