वो प्यारा बचपन - कविता - निकिता मिश्रा

वो प्यारा बचपन पीछे जा रहा है,
यादो में तेरी खोया जा रहा है।
वो ज़िद कर के कुछ भी माँग लेना,
वो रूठ कर किसी से कुछ भी कह देना,
ऐसा बचपन न जाने कहा खोता जा रहा है,
वो प्यारा बचपन पीछे जा रहा है।

वो गुल्ली डंडे का खेल,
वो एकड़ दुकड़ की रेस,
वो गेटिस वो छुपन छुपाई का खेल,
सब अजनबी लगते है,
लेकिन याद कर के हम आज भी हँसते है।
ऐसा बचपन न जाने कहाँ खोता जा रहा है,
वो प्यारा बचपन पीछे जा रहा है।

वो दादा दादी के साथ खेल,
वो नानी की कहानियाँ,
जैसे खोए से लगते है,
लेकिन आज भी हम इनसे नाता रखते है,
मन में सँजोए हम यादे बहुत सी रखते है।
ऐसा बचपन न जाने कहाँ खोता जा रहा है,
वो प्यारा बचपन पीछे जा रहा है।

वो प्यारा बचपन हम फिर दोहराएँगें,
उन यादो में हम फिर से गुम हो जायँगे।
जिस बचपन को पीछे छोड़ा था हमने,
हम खींच उसे वापस ले आएँगे।
हम खींच उसे वापस ले आएँगे।।

निकिता मिश्रा - वाराणसी (उतर प्रदेश)

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos