मेरे घर भी आना - कविता - सौरभ तिवारी

हे माँ लक्ष्मी! इस दीवाली
मेरे घर भी आना,
नहीं चाहिए सोना-चाँदी
बस दो रोटी ले आना।

लाल कुपोषण झेल रहा है
और घर में लाचारी है,
टूटे छप्पर से तारे गिन
कटती रात दुखारी है।
सबको सबकुछ देने वाली
मेरी भी भूख मिटाना,
हे माँ लक्ष्मी! इस दीवाली
मेरे घर भी आना।

बरखा की मारी दीवारें
गिरने को आतुर दिखतीं है,
चिन्ता की आलेख लकीरें
बरबस माथ पे खिचतीं है।
तुम तो अंतर्यामी हो माँ
हर तकलीफ़ मिटाना,
है माँ लक्ष्मी! इस दीवाली
मेरे घर भी आना।

चूल्हे की आग में शीतलता है
पेट की आग दहकती है,
दाना चुगने आई चिड़िया
माथा पीट सिसकती है।
मेरी चिड़िया, मेरी गुड़िया
दोनों की आस निभाना,
हे माँ लक्ष्मी! इस दीवाली
मेरे घर भी आना।

माटी के बर्तन सब खाली
घर मे पसरी बदहाली है,
अपने घर में तो दिवाला
दुनियाँ की दीवाली है।
कौन सी ग़लती हुई है मुझसे
सारी बात बताना,
हे माँ लक्ष्मी! इस दीवाली
मेरे घर भी आना।

आस के दीपक बुझ जाते
जब बच्चे भूखे सोते है,
दीवाली पर दीप जलेंगे
झूठे स्वप्न संजोते हैं।
बड़ा कठिन है उन बच्चों के
आशादीप जलाना,
हे माँ लक्ष्मी! इस दीवाली
मेरे घर भी आना।

मैं भी तो बेटी तेरी हूँ
फिर क्यूँ ये लाचारी है?
धनवाले अक्सर कहते है
लक्ष्मी सिर्फ़ हमारी है।
एक रात को मैं बेटी
तुम मेरी माँ बन जाना,
हे माँ लक्ष्मी इस दीवाली
मेरे घर भी आना।

दीप जलाऊँ तुम्हे मनाऊँ
लेकिन तेल नहीं है,
त्यौहारों और भूख ग़रीबी
का कोई मेल नहीं है।
देने को कुछ पास नहीं 
मेरे आँसू ले जाना,
हे माँ लक्ष्मी! इस दीवाली
मेरे घर भी आना।

नहीं माँगती धन वैभव
मेरे मन मे ख़ुशहाली है,
मन है पूरा भरा हुआ
क्या हुआ पेट जो खाली है।
लाड़ लड़ाना इस बेटी से
बस सिर पे हाथ फेरना।
हे माँ लक्ष्मी! इस दीवाली
मेरे घर भी आना।

सौरभ तिवारी - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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