उल्लास - कविता - अर्चना कोहली

उल्लास की तरंग से मन होता प्रफुल्लित,
त्यौहारों की रुत से हमारा अंतर्मन है हर्षित।
अद्वितीय होते हैं सतरंगी ये सभी ही त्योहार,
उमंग-उल्लास का देते हमें अमोल उपहार।।

एक ही तरह के कार्यों से जब मन ऊब जाता,
थकान-असंतुष्टि से जब हमें कुछ भी न भाता।
तब त्यौहारों की मौज़-मस्ती ख़ुशी अपार देती
अद्भुत-सी ताज़गी-स्फूर्ति मन में भर जाती।।

जीवन हमें पल पल नए-नए अनुभव देते हैं
कड़वे-मीठे पलों से रू-ब-रू करवाते रहते हैं।
तब नवीन संचार-से आशा के दीपक जलते हैं
सकारात्मकता से दिल हमारा रोशन करते हैं।।

उल्लसित परिवेश संगीतमय धुन सा लगता है,
पंछियों के कलरव-सा दिल में घुलता रहता है।
देश के कोने-कोने में हर्ष-तरंगें बिखरी रहती,
इनसे ही सतरंगी सपनों की सुंदर कड़ी बनती।।

जन्म से मृत्यु तक हर्ष के अवसर आते रहते,
बरखा-बौछारों-सा वे तन-मन सराबोर करते।
अगर हमारे जीवन में न होता हर्ष-उल्लास,
तो कैसे कभी आ पाते ख़ुशी के पल पास।।

अर्चना कोहली - नोएडा (उत्तर प्रदेश)

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