दिए जलाएँ - गीत - भगवत पटेल 'मुल्क मंजरी'

आओ फिर से दिए जलाएँ।
मिलकर तम को दूर भगाएँ।

आडम्बर, प्रपंच, पाखण्ड से 
हरदम दूर रहें हम।
ईर्ष्या, द्वेष कहीं न हो,
न हो कोई  ग़म।।
छल कपट के तम को हरकर 
प्रेम का दीप जलाएँ।
आओ फिर से...

हो समाज में समरसता 
कम न हो सम्मान।
ज्ञान का दीप चलो जलाएँ,
कर लें कार्य महान।
बाल विवाह और कुरीति के
तम को दूर भगाएँ।
आओ फिर से...

बेटी है पराया धन 
संकीर्ण है सोच विचार।
बेटा ही देगा मुखाग्नि,
है सोच बेकार।
इन कुरीतियों के तम को
फिर से दूर भगाएँ।
आओ फिर से...

पढ़ा लिखा हो हर परिवार
हर का हो सम्मान।
हुनरमंद हर एक व्यक्ति हो,
बने भारत की पहचान।
शिक्षा का दीप जला दें हम सब
आगें बढ़ते जाएँ।
आओ फिर से...

भगवत पटेल 'मुल्क मंजरी' - जालौन (उत्तर प्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos