रखें सफ़ाई गेह हम, स्वच्छ बने परिवार।
तभी सफ़ाई देश का, रोगमुक्त आधार।।
तजें लोभ इच्छा प्रबल, करें सफ़ाई सोच।
मानवता हो भाव मन, हो विचार में लोच।।
अन्तर्वेदित लालची, काटे नद गिरि वृक्ष।
हो निकुंज सुषमा विरत, नभ भूमि अंतरिक्ष।।
चलें प्रदूषण हम मिटा, प्रजा संग सरकार।
वृक्षारोपण हम करें, बने हरित संसार।।
रहें सजग हम स्वच्छता, है जीवन उपचार।
पुनः सजाएँ हम प्रकृति, लगा वृक्ष उपचार।।
कुदरत का अद्भुत सृजन, भू जलाग्नि नभ वात।
वृक्षारोपण हो धरा, जीवन नवल प्रभात।।
बचे प्रकृति पर्यावरण, वृक्षारोपण कार्य।
स्वच्छ चित्त सत्काम हो, मानवता अनिवार्य।।
सुरभित कुसमित हो प्रकृति, निर्मल हो नीलाभ।
वन पादप फिर हरितिमा, नव जीवन अरुणाभ।।
चलो बचाएँ ज़िंदगी, तरु रोपण अभियान।
बचें कोरोना प्रलय से, खिले फूल मुस्कान।।
पर्वत वन-पादप हरित, सरिता अविरल धार।
वृक्ष लगा फिर से प्रकृति, करें मुदित संसार।।
बनें स्वच्छ पर्यावरण, निर्मल हो परिवेश।
हो नीरोग जन देश का, सुखद शान्ति संदेश।।
बने मीत निज ज़िंदगी, गढ़ें चारु संसार।
सप्त सरित धरती प्रकृति, प्रगति सिन्धु आचार।।
रहे स्वच्छ मानव चरित, रहे स्वच्छ पुरुषार्थ।
नीति प्रीति समरथ सुखी, ख़ुशियाँ दें उपहार।।
करें सफ़ाई दहशती, और देश गद्दार।
खल कामी और गबन की, करो सफ़ाई यार।।
रखें सफ़ाई चरित की, स्वच्छ बनें आचार।
हो विकास जनगणमुखी, स्वच्छ प्रकृति संसार।।
डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' - नई दिल्ली